Sunday, June 15, 2025

स्वदेशी की विकास यात्रा

 


                स्वदेशी की विकास यात्रा

1. भूमिका

विकास यात्रा से तात्पर्य है कि स्वदेशी जागरण मंच के आज के विराट स्वरूप धारण की गाथा। स्वदेशी जागरण मंच क्या है, यह जानकारी सबको होनी चाहिये, हम किस वंश से जुडें है, किस कुल से उत्पन्न हुए हैं, कौन सी हमारी परम्परा है, हमारा इतिहास क्या है, किस मुहुर्त में, किस नक्षत्र में हमारा जन्म हुआ है, हमारा लालन पालन कैसा रहा है, यानि कुल मिलाकर स्वदेशी जागरण मंच, जब एक मंच के नाते जब इस धरती पर आया, तब से लेकर आज तक, हमारी यात्रा का क्रम कैसा रहा है? यह एक लम्बा इतिहास है। लेकिन मील स्तम्भ कहे जा सके ऐसे तथ्य यहाँ रखने का प्रयत्न होगा ।

 

2. दूसरा स्वातन्त्र्य युद्ध: आर्थिक स्वतंत्रता हेतु

यह जो विकास यात्रा है, यह स्वदेशी की नहीं, बल्कि इस मंच की विकास यात्रा है। यह देश जब राजनीतिक स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ रहा था, जब हम अंग्रेजों के गुलाम हुए थे, दासता का युग उससे पूर्व भी था। विशेषकर अंग्रेजों के गुलामी के दौर में जिन परिस्थितियों का निर्माण इस देश के अन्दर हुआ, उसमें स्वदेशी का भाव, स्वदेशी के कार्यक्रम इनका प्रस्फुटन हुआ था। स्वदेशी का सबसे पहला आंदोलन बंग-भंग आंदोलन, श्री लाल-बाल-पाल के नेतृत्व में लड़ा गया। आजादी मिलने के बाद ही और जिस प्रकार से विदेशी ताकतों का हमारे नीति निर्धारण में जो प्रभाव दिखाई देने लगा, उसके कारण समय-समय पर स्वदेशी की माँग उठती रही है। विशेषकर जब विश्व बैंक के दबाव में 1965 ई. में सिन्धु जल बटवारे का समझौता भारत और पाकिस्तान के मध्य हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक परम् पूज्य गुरू जी ने देश की सरकार और जनता को उस समय सावधान किया था कि नीतियों के निर्धारण के मामले में, किसी दूसरे देश से समझौता करने के मामले में, सरकार विदेशी प्रभाव में न आएं। वास्तव में सिन्धु जल समझौता विश्व बैंक के दबाव में किया गया। राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेने के बाद यह एक प्रकार से आर्थिक परतन्त्रता है। इस आर्थिक गुलामी के लक्षण राजनीतिक आजादी के बाद ही नजर आने लगे थे. 

कुल मिलाकर मंच के नाते हम स्वदेशी आन्दोलन चला रहे हैं। जिसको हमने कहा है कि यह स्वदेशी आन्दोलन आर्थिक स्वाधीनता के लिए एक युद्ध है। यह द्वितीय स्वतन्त्रता युद्ध है। इस शब्द का प्रयोग हमने किया। आज कल ’आर्थिक स्वतन्त्रता का दूसरा संग्राम’ शब्द का प्रयोग बहुत लोग कर रहे हैं। लेकिन इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने 1982 में किया था। उस समय उन्होंने कहा था कि देश एक आर्थिक परतन्त्रता के युग में जा रहा है और आर्थिक परतन्त्रता से मुक्ति के लिए हमें दूसरा स्वाधीनता संग्राम लड़ना पड़ेगा। 1984 मे इन्दौर में भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्तों का एक पाँच दिनों का अभ्यास वर्ग लगा था, जो बहुत ऐतिहासिक था, उस वर्ग में मैं भी उपस्थित था। उसी समय देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या हो गयी थी। तीन दिनों में ही वर्ग का समापन करना पड़ा। पूरा देश एक संकट के दौर से गुजर रहा था। इन्दौर भी उसी के प्रभाव में था।

चाहे यह थोड़ा अलग प्रसंग है परन्तु हम दूसरी बात बताना चाह रहे हे. एक दृष्टि से भी इन्दौर का अभ्यास वर्ग एक ऐतिहासिक था। क्योंकि उसी समय पहली बार सभी कार्यकर्ताओं के सामने आर्थिक पराधीनता और दूसरा स्वातन्त्र आन्दोलन के बारे में राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने अपने विचार रखे थे। तब भारतीय मजदूर संघ ने यह काम आरम्भ किया था और उसके बाद 1984 ई. के ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपने मुम्बई अधिवेशन में पहली बार स्वदेशी व आर्थिक स्वातन्त्रय संग्राम जैसी बातें दोहरायी। मंच के नाते स्वदेशी जागरण मंच का 22 नवम्बर 1991 को गठन हुआ। अतः 1982 ई. से भारतीय मजदूर संघ ने ’आजादी की दूसरी लड़ाई’ शब्द का प्रयोग आरम्भ किया, यह अपना कार्य उसी का विस्तार था। 

 

3.नई आर्थिक नीतियां: विनाश को निमंत्रण

याद करें कि 1991 में जब लोकसभा के चुनाव हुए और इस चुनाव में किसी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। काँग्रेस सबसे बड़े दल के रुप में उभरी थी। श्री नरसिहं राव जी के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ और डा. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने। तब डा. मनमोहन सिंह कांग्रेस पार्टी के सदस्य नहीं थे और उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था। वित्तमंत्री रहने के नाते 24 जुलाई 1991 को भारतीय संसद में एक प्रस्ताव लाएं जिसमें देश की गिरती आर्थिक स्थिति, और पूर्व की सारी सरकारों की आलोचना की (यद्यपि ज्यादा दिनों तक सरकारें कांग्रेस की ही रही थी और बहुत लम्बे समय तक उन सरकारों के सलाहकार स्वयं डा. मनमोहन सिंह थे। प्रमुख आर्थिक सलाहकार रहे, रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे, यानि कि इन्हीं के सलाह पर और इन्ही के निर्देशन में सरकार आर्थिक नीतियाँ तय करती रही थी।) 24 जुलाई को डा. मनमोहन सिंह ने पूर्व की सारी नीतियों की आलोचना करते हुए, नयी आर्थिक नीतियों की घोषणा की, जो कि 1 अगस्त 1991 से लागू हुई।

ये नई आर्थिक नीतियाँ क्या थीं?

प्रस्ताव में तो ये उल्लेखित किया गया कि

·       देश गहरे आर्थिक संकट में फँस गया है, भुगतान संतुलन का संकट है।

·       देश को बाहर से वस्तुएं मंगाने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं है,

·       आय की विषमता हो गयी है,

·       बेकारी फैल रही है,

·       गरीबी फैल रही है,

ये सब कुल मिलाकर देश एक भंयकर आर्थिक संकट में फँस गया है और इसमें से निकलने का एक मात्र उपाय - नयी आर्थिक नीति को लागू करना है।

 (जिसका परिणाम यह हुआ कि हमें 67 टन सोना गिरवी रखना पड़ा।)

After the country was unable to meet its Balance of Payments (BoP) and realizing it had foreign exchange reserves to last few weeks with a debt of $ 72 billion to the World Bank, it decided to immediately secure a loan of $2.2 billion by pledging 67 tonnes of India's gold reserves to the Bank of England (47 tonnes) and 20 tonnes to an unknown bank at the time.

इस देश में विदेशी पूँजी को आमंत्रित किया जाए। यानि कि देश अपने पैरों पर विकास नहीं कर सकता, अपने सामथ्र्य के बल पर ये देश खड़ा नहीं हो सकता, इसलिए विदेशी पूँजी की बैसाखी देश के लिए आवश्यक है। नियमों में ढील दी गयी। कस्टम्स ड्युटी घटायी गयी। जो क्षेत्र प्रतिबन्धित थे, उनको खोला गया यानि कि विदेशी पूँजी को यहाँ खुलकर खेलने का मौका, नयी आर्थिक नीतियों के माध्यम से दिया गया। परिणाम क्या हुए ? यह एक लम्बा और दूसरा विषय है।

4. स्वदेशी जागरण मंच - गलत आर्थिक नीतियों का राष्ट्रवादी उत्तर

जब ये नीतियाँ आयी तो ऐसे में जो राष्ट्रवादी लोग थे जिन्हें संघ परिवार कहा जाता था, की बैठक नागपुर में हुई। उस बैठक में एक निर्णय-प्रस्ताव पारित किया गया कि नयी आर्थिक नीतियों के कारण जो संकट खड़ा हो गया है, वह देश को फिर से गुलामी के नये दौर की ओर प्रवेश कराने वाला है।

यानि हजार, बारह सौ वर्षों तक हमने गुलामी के खिलाफ संघर्ष किया, कभी हारे, कभी विजयी रहे, लेकिन अंततः हम 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के खिलाफ विजयी हुए और विश्व क्षितिज पर भारतवर्ष का एक नये देश के नाते उदय हुआ। अब फिर से ये खतरा उत्पन्न हो गया है कि भारत वर्ष एक नये गुलामी के दौर में प्रवेश करने वाला है। अगर एक बार हम आर्थिक गुलामी में प्रवेश कर गये तो शायद हम राजनीतिक स्वतन्त्रता भी अक्षुण्ण नहीं रख पायेगें। ऐसा एक नया खतरा इस देश के सामने उत्पन्न हो गया है। इस खतरे से निकलने का एक ही मार्ग है कि स्वदेशी जागरण मंच को औजार के रुप में उपयोग करके, आर्थिक स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी जाए, ऐसा संघ की उस नागपुर बैठक में कहा गया।

चूँकि आक्रमण का प्रकार नया था, इस देश ने अभी तक आक्रमण बहुत झेले थे, कुछ शारीरिक, कुछ मानसिक आक्रमण झेले थे। किन्तु यह एक शक्ति के द्वारा एक प्रकार का आक्रमण हुआ करता था जिसका हमने सामना किया था। परन्तु यह जो नया आक्रमण का दौर आरम्भ हुआ इसका प्रकार थोड़ा भिन्न हो गया था। देश ने इसके पूर्व इस प्रकार का आक्रमण नहीं देखा था। इसमें समाज जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं था, जिस पर आक्रमण ना हुआ हो। यह केवल विदेशी पूँजी भारत नहीं आ रही थी, केवल अमेरिका का डाँलर नही आ रहा था, यह विदेशी पूँजी और अमेरिकी डाॅलर के साथ-साथ एक विदेशी विचार-संस्कृति का आक्रमण भी हो रहा था। जिसको अप-संस्कृति कहते हैं। सांस्कृतिक आक्रमण हमारे देश पर शुरू हुआ। यह विदेशी संस्कृति का आक्रमण था।

यह जो नये प्रकार के आक्रमण शुरु हुए, इन्हें पारम्परिक हथियारों से नहीं लड़ा जा सकता। किसी एक संगठन के बूते की बात नहीं रही। हमारे यहाँ संगठन तो कई थे। कहीं मजदूर संघ लड़ रहा था, तो कहीं विद्यार्थी परिषद्। कहीं धर्म के क्षेत्र में विश्व हिन्दु परिषद, तो कहीं शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती, कहीं किसानों की समस्याओं को लेकर भारतीय किसान संघ। ये सब लड रहे थे।

5. स्वदेशी जागरण मंच का गठन

नये हथियार के नाते, स्वदेशी जागरण मंच का गठन किया गया और स्वदेशी जागरण मंच की संचालन समिति बनायी गई। जिसमें सात प्रमुख संगठन थे। राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय जनता पार्टी, मजदूर क्षेत्र में काम करने वाला भारतीय मजदूर संघ, किसान क्षेत्र मंे काम करने वाला भारतीय किसान संघ, विद्यार्थियों के बीच काम करने वाला अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा के लिए विद्या भारती, महिलाओं और भगिनियों के लिए काम करने वाली राष्ट्रसेविका समिति, ऐसे राष्ट्रवादी संगठनो को मिलाकर स्वदेशी जागरण मंच का गठन हुआ। अर्थात् स्वदेशी का गठन एक संस्था के रुप में नहीं हुआ।

मंच को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण विषय है कि स्वदेशी जागरण मंच एक संस्था नहीं है बल्कि आंदोलन है। देश में अनेक प्रकार की संस्थाएं चल रही हैं। एक-एक विषय को लेकर काम करने वाली। स्वदेशी जागरण मंच एक मंच है जो स्वदेशी के लिए काम करता है। स्वदेशी को लेकर काम करने वाले चाहे किसी भी विचारधारा के हो, लेकिन आर्थिक स्वतंत्रता का विषय उनको प्रिय है तो वे स्वदेशी जागरण मंच के साथ काम कर सकते है। इसलिए जैसे ही स्वदेशी जागरण मंच बना, वैसे ही फरवरी 1992 में पहली बार 15 दिनों का पूरे देश भर में हमने एक जन सम्पर्क अभियान लिया। लगभग तीन लाख गांवों में हमारे कार्यकर्ता गए। एक सूची दी, हमने कि स्वदेशी वस्तु क्या है, विदेशी वस्तु क्या है? साथ ही जनता से आग्रह किया कि अगर हमें इस आर्थिक संग्राम में विजयी होना है तो स्वदेशी वस्तु का अंगीकार करें और विदेशी वस्तु का बहिष्कार करें। इस आन्दोलन ने पूज्यनीय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जो एक आन्दोलन चला था, बहिष्कार का आन्दोलन, विदेशी वस्तुओं के होली जलाने का आन्दोलन, उसकी स्मृति को ताजा कर दिया।

 

6. कारवां बढ़ता गया:

एक नये प्रकार का स्वदेशी-अंगीकार और विदेशी-बहिष्कार का आन्दोलन हुआ जिसकी गूँज भारतवर्ष के गाँव-गाँव तक पहंुची। सेकुलर कहे जाने वाले लोग, कम्युनिस्ट कहे जाने वाले लोग भी स्वदेशी जागरण मंच में आ गये। इसका पहला अखिल भारतीय सम्मेलन 3,4,5 सितम्बर 1993 को दिल्ली में हुआ और आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि उस सम्मेलन का उद्घाटन इस देश के बहुत बडे मार्क्सवादी विचारक और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस वी.आर. कृष्ण अय्यर ने किया और उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि उन्हें उनके कई मित्रों ने इसमें आने के लिए मना किया था, क्यांेकि स्वदेशी जागरण मंच आर.एस.एस. का है। मित्रों की बातों को दरकिनार करते हुए मैं यहाँ आया हूं और मंच के माध्यम से, जस्टिस अय्यर ने कहा था कि देश का भला सोचने वाले सारे लोगों को अपने मतभेदों को दरकिनार करते हुए स्वदेशी के मंच पर आना चाहिये और देश में एक नया स्वदेशी आन्दोलन खड़ा करना चाहिए।

7. विरोधी बने समर्थक

जस्टिस अय्यर ने इस देश के नकली बुद्धिजीवियों को लताड़ा। कठित बुद्धिजीवियों के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग किया। अंग्रेजी में उन्होने कहा कि आज के भारतीय बुद्धिजीवी अमेरिका के कालगर्लस् बन गये है। जस्टिस अय्यर ने राजनेताओं का आह्वान किया कि सारे मतभेदों को भुलाकर स्वदेशी जागरण मंच पर आइये। यह देश की आवश्यकता है। स्वदेशी जागरण मंच के प्रथम अखिल भारतीय संयोजक डाॅ. एम.जी. बोकरे बने। स्वयं डाॅ. बोकरे इस देश के गिने चुने माक्र्सवादी बुद्धिजीवियों में थे। डाॅ. बोकरे ने एक बडे़ ग्रन्थ ‘हिन्दु-इकोनोमिक्स’ की रचना की। डाॅ. बोकरे नागपुर विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर और अर्थशास्त्र के अध्यापक थे। उन्होंने अपने पहले उद्बोधन मे कहा कि माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी को जितनी गालियाँ नागपुर में पड़ी, उसमें देने वालों में पहला नाम डाॅ. बोकरे का था। वही बोकरे दत्तोपंत ठेंगड़ी जी द्वारा स्थापित, स्वदेशी जागरण मंच के पहले संयोजक बने। उन्होंने कहा कि मैंने रिटायरमेन्ट के बाद हिन्दू धर्मग्रन्थों का अध्ययन किया। जैसे कौटिल्य का अर्थशास्त्र, शुक्रनीति, वेदों एवं उपनिषदों का। इनके अध्ययन के बाद मुझे लगा कि भारत में अर्थशास्त्र के अध्ययन की सुदीर्घ परम्परा रही है। इसके बाद मैंने हिन्दू इकोनोमिक्स लिखा। इस प्रकार स्वदेशी जागरण मंच का शुभारम्भ हुआ।

इसी तरह 1994 में हमने दूसरा अखिल भारतीय अभियान लिया। 1992 के अभियान में केवल सूची दी थी कि स्वदेशी अपनाओ और विदेशी हटाओ। 1994 के अभियान में हमने कुछ बातें जोड़ीं। सूची के साथ इस देश के संसाधन क्या है जल, जमीन, जंगल, जानवर, जन्तु इसका एक बड़ा व्यापक सर्वेक्षण किया। लगभग 3 लाख गावों में कार्यकर्ता इस अभियान में गये। और कई नये कार्यकर्ता हमसे जुड़ गये। जिनका अन्य बातों से विरोध था, वो भी साथ आये। चन्द्रशेखर जैसे समाजवादी ने भी हमारे अभियान का श्रीगणेश किया और देश के पाँच स्थानों पर हमारे अभियान में भाषण दिया। दिल्ली में स्वदेशी जागरण मंच के प्रेस कार्यक्रम में उनके आने से पूर्व वही पत्रक बाँटा गया जो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक बालासाहब देवरस के नागपुर में स्वदेशी के कार्यक्रम में बाँटा गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो बात बालासाहब बोलना चाहते थे, इस आर्थिक संकट के बारे में, मेरा भी वही मत है, अतः मैंने उन्हीं का प्रेस ब्रीफ जानबूझकर पहले बंटवाया है।

चन्द्रशेखर जी समाजवादी थे, आरएसएस के आलोचक थे, लेकिन स्वदेशी के मंच पर आये। जार्ज फर्नाडीज़ बहुत बड़े समाजवादी नेता थे, एस.आर. कुलकर्णी पोस्ट एण्ड टेलिग्राफ वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष थे, वे भी स्वदेशी के मंच पर आये।

यहाँ तक तो बात रही, लेकिन देश के एक बडे़ वामपन्थी पत्रकार, सम्पादक शिरोमणि व विश्वप्रसिद्ध माक्र्सवादी निखिल चक्रवर्ती सम्पर्क में आये। वे स्वदेशी के कार्यकर्ताओं को (उनके पोशाक) देखकर भड़क गये, और कहे कि सब आरएसएस वाले हैं। जब एक कार्यकर्ता ने स्वदेशी का पत्रक दिखाया तो उसे वो बड़े ध्यान से देखते रहे और कहा कि लगता है आरएसएस ने नया शिगूफा छोड़ा है। अरे जनसंघ और आरएसएस, पूँजीपतियों और बनियों के पहले से दलाल हैं। और नयी आर्थिक नीतियों के कारण देशी पूँजीपति समाप्त होने वाले हैं, जिन्हे बचाने के लिए ये शिगूफा छोड़ा गया है। ये बातंे पत्रक पढ़ने के दौरान निखिल जी कह रहे थे। पत्रक पढ़ते-पढ़ते उनकी नज़र एक जगह अटक गयी और पूछा कि ‘‘क्या प्रचार कर रहे हो, आप लोग? टार्च में, जीप टार्च लेनी चाहिये, एवरेडी नहीं लेनी चाहिये?’’ अब निखिल चक्रवर्ती को पता था कि जो जीप वाली टार्च है उसे एक मुसलमान सज्जन बनाते हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं से पूछा - कि तुम्हें पता है कि जीप टार्च कौन बनाता है? तो एक कार्यकर्ता ने कहा कि हैदराबाद के अमन भाई बनाते हैं। ‘‘वो तो मुसलमान हैं, और तुम लोग आरएसएस वाले हो, उसका प्रचार क्यों कर रहे हो?’’ तो कार्यकर्ता ने कहा - ‘‘कुछ भी हो, जीप स्वदेशी है, इसलिए हम इसका प्रचार कर रहे हैं।’’ इतना सुनकर निखिल चक्रवर्ती का दिमाग फिर गया और जब वे देहरादून से दिल्ली आये तो एक लम्बा कालम लिखा, जिसमें देश के सभी विचारधारा वाले लोगों से आपसी मतभेद भुलाकर, स्वदेशी से जुड़ने का आग्रह किया। बाद में 3 मई 1992 को मद्रास के एक कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा की हमें अपने नेताओं को चेतना होगा कि ‘ अगर आप हमें गरीबी से नहीं बचा सकते तो कम से कम हमें बंधुआ मजदूर तो न बनाये.’ उन्होंने आगे कहा की ‘ हो सकता है कि’ लोग इस स्वदेशी आन्दोलन को पुरातनपंथी कहें, नहीं, यह पुरातन पंथी नहीं हे, बल्कि यह इस देश के पुनर्जागरण की भावना को जागृत करने का प्रयास है.”

8.पहला अभियान: पहला बड़ा संघर्ष – एनरोंन

एक बड़ा आवश्यक मुद्दा ध्यान में आया ’एनराॅन और एनराॅन (पावर क्षेत्र में मल्टीनेशनल कंपनी)। इस मुद्दे को स्वदेशी जागरण मंच ने 1995 में चलाया। इसने दावा किया की 24 घंटे सात दिन बिजली प्रदान करेगी, लेकिन ये मृग जाल था. वास्तव में ऐसा नहीं हुआ, परन्तु पैसा हमारी ही सरकार से लेकर लगाया था. बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मकडजाल का जो हम वर्णन करते थे, ये उसका प्रकट रूप था. लोगो को समझाने के लिए प्रत्यक्ष उदहारण था सामने. हमने बड़े बौद्धिक दृष्टि से इसका अध्ययन किया एक डाॅक्यूमेन्ट बनाया ’एनराॅन देश के हित में नहीं है’ हमने ऐसी कोरी नारे-बाजी नहीं की। बड़ा अध्ययन करते हुए, काम करते हुए, हमने डाॅक्यूमेन्ट बनाया, लाया और उस आन्दोलन को हमने जमीन पर नेतृत्व देना शुरू किया। रत्नागिरि जिले में, जहां लड़ाई जमीनी स्तर पर हो रही थी और महाराष्ट्र में सरकार के विरोध में शरद पंवार की सरकार के विरोध में, एनराॅन को केन्द्र बिन्दु बनाकर, एक जबरदस्त जन-आन्दोलन हमने प्रदेश भर में चलाया, जिसका नेतृत्व स्वदेशी जागरण मंच ने किया, बहुत सारे लोग सहयोगी थे, समाजवादी और सर्वोदयीवादी। सारे लोग जुड़े लेकिन आन्दोलन को एक-एक कदम आगे बढ़ाने का काम स्वदेशी जागरण मंच ने ही किया। यानि नेतृत्व करने का कार्य मंच ने किया। उस समय ’फास्ट ट्रैक प्रोजेक्टस’ जो इलेक्ट्रीसिटी के लिए, कोई सात-आठ की संख्या में प्रोजेक्ट्स चल रहे थे, जिसमें एनराॅन एक था। उधर ’काॅजेस्ट्रिक्स’ कर्नाटक में आ रही थी। इस प्रकार की कई कम्पनियों को लाने का एग्रीमेन्ट आंध्र प्रदेश में भी हुआ था, तो एनराॅन को हम लोगों ने जैसे ही लड़ाई का मुद्दा बनाया, तो अन्य विदेशी कंपनियों के विदेशी निवेश की रफ्तार धीमी हो गयी, कि जरा सावधानी से देखा जाए। देश और समाज, इस पर क्या संकेत देता है, इसको समझा जाए। उसके बाद निवेश करना या नहीं करना, देखेंगे, ऐसा निवेशकों को लगा। 

धीरे-धीरे रफ्तार बिलकुल बन्द हो गयी। तो पूरे देश के वैश्वीकरण के विरोध में, स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाने वाला समाज का यह आन्दोलन हुआ। जिसका नेतृत्व हमने किया, लेकिन लड़ाई समाज ने लड़ी। समाज ने जो लड़ाई लड़ी वह कोई साधारण लड़ाई नहीं थी। बाद में नन्दीग्राम (बंगाल) की लड़ाई आम आदमी ने लड़ी। मामूली बात नहीं है कि जमीन की कीमत पांच लाख, दस लाख प्रति एकड़ तय कर दे, फिर भी किसानों का यह कहना कि हमें नहीं चाहिए। रत्नागिरी के किसानों ने ’हमें नहीं चाहिए’ कह कर यह लड़ाई लड़ी और हमने नेतृत्व किया। और कुल मिलाकर इस लड़ाई को वैश्वीकरण के विरोध में लड़ा गया। एनराॅन आन्दोलन, एक सफल शुरूआत था।

आन्दोलन को चलाने में, उठाने में, नेतृत्व देने में, लोगों को उस पर चर्चा में खींचने में, हम सफल हुए। इसकी घोषणा हमने कलकत्ता अधिवेशन में किया कि हम निर्णायात्मक लड़ाई लड़ेगे, हम इस पर आगे बढ़ेंगे। इस लड़ाई की एक और भी कहानी है, पहलु है. अब इस कहानी का प्रत्यक्ष रूप सामने आया कि इस लड़ाई के ’ग्रे’ एरिया भी है, कि जिन राजनेताओं के सहयोग से हम इस लड़ाई में आगे बढ़े, उनकी सरकार आने के बाद, उन्होंने एनराॅन के साथ समझौता किया। 

13 दिन की राजग सरकार, और उसमें एक केबिनेट मीटिंग हुई। उसमें एक निर्णय हुआ। अल्पमत की सरकार, जो संसद में विश्वासमत का प्रस्ताव हार गई, लेकिन एनराॅन के समझौते पर केन्द्र सरकार ने अनुमति दे दी। तो इससे जन आन्दोलन को जबरदस्त धक्का लगा, लेकिन भगवान सच्चाई के पक्ष में रहते हैं। सच्चाई की जीत हमेशा होती है। सच्चाई की जीत को कोई रोक भी नहीं सकता। इसलिए, एनराॅन के जितने पहलू थे, उसकी कीमतों की दृष्टि से, उसके आधारिक संरचना की दृष्टि से, कम्पनी के प्रोफाइल की दृष्टि से, उस कम्पनी के अभी तक के कार्यों संबंधित जितने भी मुद्दे थे वह सबकी दृष्टि से, वह सब जिसने भी उठाने की कोशिश की, उसको उठाने के लिए, अपने पाले से पाला-बदल कर के कोशिश किया। लेकिन अन्त में हुआ यह कि, एनराॅन, हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे’, के अन्दाज में यानि जिन लोगों ने एनराॅन को समर्थन दिया, उनके मुंह पर तमाचा लगाते हुए, डूब गया। साथ ही हमारे आन्दोलन में उतार-चढ़ाव आते रहे, हमारे लिए दिक्कतें भी रही। हमारे लिए चुनौतियाँ भी रही, लेकिन हमारा ‘चाल, चरित्र और चेहरा’ बेदाग़ रहा, अडिग रहा. लड़ाई के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, जनहित और राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों के प्रति निष्ठों, स्वदेशी नेतृत्व में लोगों में विश्वास भी पैदा हुआ। 

हमारी कमजोरियाँ भी सामने आई होगी। लेकिन ’ये लोग अपने-पराये के लिए नहीं, राष्ट्रहित के लिए लड़ेंगे’ यह भी इसी संघर्ष ने स्थापित कर दिया। तो हमने इसे कलकत्ता अधिवेशन (1995) से प्रारम्भ किया। मूर्तिमान मुद्दो पर आन्दोलनों की घोषणा कलकत्ता सम्मेलन में की गई। आखिर दूर रहने वाले मुद्दों के बारे में केवल जागरण से नहीं चलेगा, कुछ मुद्दों को पकड़ कर, वैश्वीकरण के विरूद्ध लड़ाई को लड़ना है, इस घोषणा के बाद इस संघर्ष को आगे बढ़ाया।

 

9.पशुधन संरक्षण आंदोलन

कलकत्ता में हमने घोषणा की, -’पशुधन संरक्षण’। विकास और खेती के संकट को हमने उसी समय भांपते हुए कहा कि मानव पशुधन का जो अनुपात है, वह बहुत घटता जा रहा है, और अधिक यांत्रिक कत्लखानों को खोलनें के प्रयास सरकारों की ओर से हो रहे है। (आंकड़े) इतने कीमती पशुधन को, चाहे वह गाय है, या बैल है, या सांड है, जो केवल घास अथवा कृषि-अवशेष खाकर पूरे देश को दूध, दही, मक्खन और कृषि के लिए अनन्त मात्रा में खाद तथा बैल जुटाने वाले कीमती पशुधन को आप बड़े सस्ते दामों में बेचते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में, पशु को काट के कारखानों में, उसको पैक करके मध्य एशिया (मिडिल ईस्ट) में निर्यात करना, क्यों? निर्यात केंद्रित अर्थव्यवस्था, निर्यात केंद्रित विकास, किसी भी कीमत पर निर्यात को बढाना, यह जो चल रहा है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो भारत के किसान और भारत की कृषि पर संकट खड़ा होगा। 
यह कोई साधारण पशु बचाने वाली बात नहीं है। इसलिए ’अल-कबीर’ जो आन्ध्र में यांत्रिक कत्लखाना खोला गया था, उसके विरोध में स्वदेशी जागरण मंच की ओर से, तत्कालीन
राष्ट्रीय संगठक मुरलीधर राव के नेत्रित्व में सेवाग्राम (वर्धा) से अल-कबीर (आंध्र प्रदेश) तक की पदयात्रा की। 750 किमी. की पदयात्रा में अपार जन समर्थन मिला। एक माह की पदयात्रा का समापन एक जनसथा में किया गया। जिसमें विभिन्न पार्टियों के नेताओं के साथ-साथ लगभग 12 हजार लोग रूद्रारम या मेड़क जिले के एक कार्यक्रम में एकत्रित हुए । स्वदेशी केवल जागरण, चर्चा और संगोष्ठी के लिए नहीं, ’सड़क पर लड़ेंगे’, इस प्रकार के आयाम देने का काम हमने ’पशुधन संरक्षण यात्रा’ से किया। 

10. सागर में संघर्ष

कलकत्ता सम्मेलन में महत्वपूर्ण निर्णय स्वदेशी जागरण मंच ने वहां लिया वह है ’सागर यात्रा’। वह बड़ी ऐतिहासिक यात्रा है। मुझे लगता है कि देश में कभी गत सैकड़ों वर्षों के इतिहास में ऐसा नहीं हुआ होगा कि सम्पूर्ण सागर की यात्रा की गई हो। इस यात्रा में नाव में बैठकर हर तट पर, हर गांव में सभा करते हुए नाव को आगे बढ़ाते जाना, और यात्रा करना क्या हुआ कि मछुआरे विवश हो रहे थे ? वैश्वीकरण के संकट से उत्पन्न बेरोजगारी के कारण परेशान हो रहे थे। क्योंकि सरकार, समुद्र की गहराई में मछली पकड़ने का काम, विदेशी कम्पनियों को, जो यांत्रिक पद्धति से मछली पकड़ने वाली एवं ’मेकेनाइज्ड फिशिंग’ करने वाली कम्पनियों को लाईसेन्स दे चुकी थी। अन्धाधुन्ध रूप से, हर तरफ, अनाप-शनाप, भारी मात्रा में मछली पकड़ना और इस प्रक्रिया में जो मछलियाँ और समुद्री जीव मर जाते उनको समुद्र तटों पर फेंकना, इस तरह प्रदुषण, बेरोजगारी और अस्तित्व का संकट था। तो हमारे पास मछुआरों में कार्यकर्ताओं की बड़ी टोली या नेटवर्क नही था। कोई संगठन भी साथ नहीं था। कोई इकाईयाँ भी नहीं था। स्वदेशी जागरण मंच ने तय किया कि यह देश का मुद्दा है, इसके लिए लड़ना है। तो कल्पना कीजिए कि एक तरफ दो हजार, एक तरफ तीन हजार किलो मीटर की समुद्र यात्रा करते हुए, त्रिवेन्द्रम में हमने अन्तिम कार्यक्रम किया। फादर थामस कोचरी के नेतृत्व में पहले से चल रहे आंदोलन को श्री सरोज मित्रा एवं लालजी भाई ने नई दिशा प्रदान की और हम देश की लड़ाई के नाते, इसे उभारने में सफल हुए।

मुरारी कमेटी की रिपोर्ट पर सरकार को विवश होकर बड़े विदेशी ट्राले के अनुबंध को रद्द करना पड़ा। क्योंकि पूरे समुद्र तट पर मछुआरों का जो समाज है वह संगठित हो गया।


11. मिनी सिगरेट विरुद्ध बीडी आन्दोलन

फिर बाद में अभियान पर अभियान हम लेते गये। फिर बीड़ी वालों के लिए भी हमने अभियान लिया। हम सब जानते है कि बीड़ी बनाने वाले लोग मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, आदि प्रांतों में हैं। इन प्रान्तों में तेंदुपत्ता से बीड़ी बनाते हुए अनेकों महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है। आई.टी.सी. जैसी बड़ी कम्पनियों को ’मिनी सिगरेट’ के लिए परमिशन मिल गया, तो उनके साथ कम्पीटिशन होता। तो ऐसे में, हमने कहा कि यह नहीं चलेगा। इतने सारे रोजगार समाप्त करके कैसे चल सकता है? इसके लिए हमने ’बीड़ी रोजगार रक्षा आन्दोलन’ चलाना शुरू किया और इसके लिए समन्वित प्रयास हमने प्रारम्भ किये और ये प्रयास भी सफल हुए। सारे आन्दोलनों में हम सफल हुए। बीड़ी रोजगार बचाने में हम सफल हुए। इस प्रकार से, मुद्दों को उठाते हुए, आन्दोलन चलाने का काम किया, और हम आगे बढ़ते गये। 

12. जनसंचार (मीडिया) को विदेशियों के हाथों में पड़ने से बचाया

इसी क्रम में मीडिया में विदेशी निवेश की बात चली। आप जानते है 1955 के केबिनेट डिसिजन के बारे में। उपनिवेशवाद के बाद भारत की केबिनेट ने यह तय किया था कि ’अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (राइट टू इन्र्फोमेशन)’ जो है वह केवल अपने नागरिकों के लिए है। इसलिए अखबार जो है वह जन-जागरूकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार के तहत आता है, इसलिए विदेशी नागरिकों के लिए इस देश में अखबार चलाने का अधिकार नहीं रहेगा। ऐसा उन्होंने तय किया था, अब उसको बदलने के बड़े प्रयास हुए, तो इसके विरोध में लड़ाई को हमने आगे बढ़ाया। लड़ाई चलती रही। कहीं हारे कहीं जीते और अंत में, 26 प्रतिशत प्रिन्ट मीडिया में विदेशी निवेश आया। लेकिन उसका लाभ यह हुआ, कि बाद में मीडिया यानि केवल प्रिन्ट मीडिया नहीं है, तो फिर अन्त में स्टार चैनल भी स्वदेशी हो गया, सारे विदेशी चैनल स्वदेशी हो गये। क्योंकि टोटल ग्रोस मीडिया जो भी है, उसमें 26 प्रतिशत से ज्यादा मीडिया में विदेशी निवेश नहीं हो सकता। इस लड़ाई को लड़ते रहने के कारण, लगातार दबाव बढ़ाने के कारण, हम अपना पूरा मीडिया जो आज है, जो पचासों चैनल आप देखते है, न्यूज का, हर स्टेट का दो-तीन चैनल्स है (उडि़या का भी चैनल्स है, तमिल का भी चैनल्स है, तेलगू का भी चैनल्स है, जितने भी चैनल्स है), पूरी तरह हमारे देश के लोगों के हाथों में है। इसका व्यापार हमारे देश के लोगों के हाथों में है। सूचना तंत्र भी हमारे देश के लोगों के हाथों में है। इसके अनुभव भी हमारे देश के लोगों के हाथों में हैं, तो इसी बलबूते वैश्विक स्तर की क्षमताओं को हमने अपने यहां विकसित किया। 

13. दूरसंचार (टेलिकम्यूनिकेशन) भी बची

उसी प्रकार टेलिकम्यूनिकेशन के विषय में हमारी लड़ाई चलती रही। अगर सरकार की मर्जी चलती, अगर सरकार का वश चलता तो 100 प्रतिशत विदेशी कम्पनियों को अनुमति होती। वे तो शुरू ही 100 प्रतिशत से करते। लेकिन हमने कहा कि टेलिकम्यूनिकेशन में जो रिवोल्यूशन आ रहा है, उसका लाभ देशी उद्योगों को, छोटे उद्योगों को चलाने वालों को भी मिलना चाहिए। 
कल्पना कीजिए कि अगर वोडाफोन जैसी विदेशी कम्पनियां पहले आ जातीं, तो जैसी स्थिति हम रेनबेक्सी के सम्बन्ध में सुन रहे है, जैसी स्थिति हम पेप्सी और कोका कोला की देख रहे है, वैसी स्थिति हम टेलिकम्यूनिकेशन में भी देखते। तो हमारी लड़ाई के कारण आज आप देखते है कि भारतीय उद्यमी चाहे वह एयरटेल हो, आइडिया हो, रिलायंस हो, टाटा हो (सब इण्डियन कम्पनीज़ हैं), भारतीय पहचान के नाते जम गये और बी.एस.एन.एल. की कहानी तो और है।


14. आंतरिक विनिवेश –

इस लड़ाई का एक और पहलू है, वह है सरकारी कंपनियों का ’विनिवेश’ (डिसइन्वेस्टमेन्ट)। चली चलाई मशहूर कंपनियों को औने पौने दामो पर नहीं, बल्कि कोडियो के दाम बेचने की कुत्सित चाल चली गयी, तो हमने विरोध किया. डिसइन्वेस्टमेन्ट चाहे नरसिंह राव की सरकार में, मारूति के सन्दर्भ में, कांग्रेस की सरकार के विरोध में, एन.डी.ए. सरकार के विरोध में, और सारी सरकारों के विरोध में डिसइन्वेस्टमेन्ट का मुद्दा, सैद्धान्तिक पक्ष की बात नहीं है, अभी इस लेकिन, हमारे देश की इतनी बड़ी संपत्ति है, जमीन है, इतना बड़ा ब्राण्ड है, उसको आप औने-पौने दाम पर बेचकर, पूंजीपतियों को दान कर रहे है। कई जगह एकाधिकार स्थापित करने के लिए, मोनोपोली लाने के लिए, जैसे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का जो ट्रेड है, उसमें रिलायंस का एकाधिकार स्थापित करने का काम, एन.डी.ए. सरकार के जमाने में हुआ। पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के टेªड में जो कम्पनी है, उनका डिसइन्वेस्टमेन्ट कर दिया, और उसके रहते हुए आज पूरे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की, पूरे देश में उसका एकाधिकार है। रिलायन्स के एकाधिकार के समर्थन में, बड़े अजूबे ढंग से तर्क दिया गया, उस समय के मंत्रालय चलाने वाले लोगों ने। तो हमने विरोध किया। हम तर्कों को सामने लाएं, हमने पूरे देश में डिबेट, एक बहस को छेड़ दिया। इस बहस का अगर कोई केन्द्र था तो वह स्वदेशी जागरण मंच था। 
विनिवेश के हम विरोध में नहीं है लेकिन देश की सम्पतियों को जिस प्रकार की पद्धतियों से बेचा गया, उसके कारण विनिवेश लगातार हमारी लड़ाई का एक मुद्दा रहा। 

15. दूसरा नमक आन्दोलन

नमक के विषय में, आयोडिन नमक!
जहां नमक के विषय को लेकर पूज्य महात्मा गांधी ने लाखों लोगों को साथ लेते हुए आन्दोलन किया। दांडी मार्च किया। उस ’दांडी मार्च’ की शताब्दी समारोह मनाकर सत्ता में आये लोग, सत्ता का सुख भोग रहे लोग, दांडी मार्च इतिहास को भुलाना चाहते है। कहीं किसी व्यक्ति को गण्डमाला (गाॅयटर) हो रहा है, इस नाम पर कम्पनियों को नमक की कीमतों को अनाप-शनाप बढ़ाने का एकाधिकार दे दिया जाता है। आयोडिन नमक के नाम पर कुछ बड़ी कम्पनियों को नमक के क्षेत्र में एकाधिकार हो गया। आयोडिन नमक की अनिवार्यता का विरोध करते हुए हमने कहा कि आयोडिन नमक के नाम पर बड़ी कम्पनियां अनाप-शनाप मुनाफाखोरी करके लोगों का शोषण कर रही है। 

जिस तरह से आयोडिन को नमक के साथ, दिया जा रहा है, उस तरह से यह भारत में चल ही नही सकता। जिस तरह से हम सब्जियों में नमक मिलाते है, उससे आयोडिन का मतलब ही नहीं रहता। ऐसे बहुत सारे तर्को को हम सामने लाये। डाॅक्टर्स, विशेषज्ञों (एक्सपर्ट्स) को हमने साथ लिया, लड़ाई आगे बढ़ाई और फिर हमने ’दांडी मार्च’ की घोषणा करते हुए कहा कि या तो आप रहेंगे या हम रहेंगे। कार्यक्रम पर कार्यक्रम चलेंगे और एक बार जनता के कार्यक्रम चलेंगे तो आपके नियन्त्रण में नहीं रहेंगे। जब आन्दोलन शुरू हुआ तो फिर सरकार ने निर्णय लिया कि आयोडिन नमक के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, अनिवार्यता समाप्त करते है। 
बाद में फिर सरकार बदली, दूसरी सरकार आयी, तो फिर इस विषय को आगे क्यों बढ़ाया ? क्योंकि काॅर्पोरेट इन्ट्रेस्ट, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित जो है, वे लगातार इसको आगे बढ़ाने में अपनी पूरी ताकत लगाते हैं. हमने भी इस मुद्दे पर सड़क, संसद, से लेकर सर्वोच्य न्यायलय तक ये लडाई लड़ी, और अभी तक चल रही है. तो हम कई मुद्दों पर लड़ते है, आंशिक सफलता प्राप्त करते है, कई मु द्दों पर सफलता प्राप्त करते है, कई मुद्दों पर गति को रोकने में हमें सफलता मिली, तो इस प्रकार से आयोडिन नमक के विषय पर हमने लड़ाई लड़ी। यह लडाई हम कोर्ट में भी लड़ रहे हैं। 

16. खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश: कभी स्वीकार नहीं

डब्ल्यू.टी.ओ. के विषय पर हमने रामलीला मैदान पर अनेकों कार्यक्रम किये। उसी प्रकार एक अन्य मुद्दा आया - खुदरा व्यापार (रिटेल ट्रेड)। रिटेल ट्रेड का मुद्दा आज का नहीं है। यह बहुत पुराना मुद्दा है। मनमोहन सिंह की सरकार के समय ’रिटेल ट्रेड’ मुद्दा था और चिदम्बरम उसको आगे बढ़ाना चाहते थे। इसके विरोध में उसी समय से हमारे कार्यक्रम शुरू हुए। महाराष्ट्र में जो ’फेहमा’ संगठन है, उस संगठन के साथ मिलकर हमने समन्वय किया और उनको आगे बढ़ाया। हम सबसे मिलते गये, और बाद में मनमोहन सिंह भी विपक्ष में आये, तो रिटेल ट्रेड के आन्दोलन को सहयोग मिला। बाद में फिर दुबारा सरकार में आये तो फिर सरकार के रूख को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के खतरे छोटे, फुटकर व्यापारियों पर है। इस विषय पर हमने विभिन्न स्थानों पर अनेकों सम्मेलन किये।

खुदरा व्यापार के आन्दोलन को अखिल भारतीय स्तर पर उठाने वाला और चलाने वाला, गैर-खुदरा व्यापारियों का संगठन अगर कोई है, तो वह स्वदेशी जागरण मंच है। गत 15-16 वर्षों से, आज जो आप देख रहें है, वह सब स्वदेशी जागरण मंच की आन्दोलनों में सक्रियता का फल है। स्वदेशी जागरण मंच के नेतृत्व में 25 जुलाई 2005 को अखिल भारतीय खुदरा व्यापार सम्मेलन दिल्ली के कांस्टीटयूशन क्लब में किया गया। देश के उतरी क्षेत्र के मात्र पांच प्रान्तों में ही दूकानदारो से हस्ताक्षर अभियान में लगभग 40 हज़ार लोगो की भागीदारी का काम हुआ.

17.‘सीमा की रक्षा-बाजार की सुरक्षा’ अभियान –

पिछले कुछ वर्षों से चीन भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर उभरा है। जहां भारत का रक्षा बजट 37 अरब डाॅलर है तो चीन का 131 अरब डालर। जहां भारत 14 अरब डालर का निर्यात (ज्यादातर कच्चा माल) चीन को करता है वहीं 54 अरब डालर का तैयार माल आयात करता है। साथ ही चीन ने एक लाख साईबर हैकर्स की सेना भी नियुक्त कर रखी है।
मंच ने देश का ध्यान चीन से संकट की ओर खीचने के लिए व्यापक अभियान चलाने का निर्णय किया। इस अभियान में मोटे तौर से तीन प्रकार की चुनौतियों को केन्द्र बिन्दु बनाया गया एवं तथ्यपरक जानकारी जनता तक पहुंचाई गई-

1. सीमा एवं सैन्य चुनौती
2. लघु उद्योग/व्यापार सहित आर्थिक चुनौती
3. दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी सहित साईबर चुनौती

इस अभियान में मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक प्रो. भगवती प्रकाश ने गहन अध्ययन के उपरांत 53 पृष्ठ की एक पुस्तक ‘चीनी घुसपैठ एवं हमारी सुरक्षा व्यवस्था’ का लेखन किया एवं मंच ने उसका प्रकाशन किया। प्रो. भगवती प्रकाश के नेतृत्व में 39 सदस्यों की टोली को इस अभियान के संचालन का दायित्व दिया गया एवं पूरे देश को 4 जोन में बांट कर अभियान चलाया गया।
दिनांक 1 सितंबर 2013 से 2 अक्टूबर 2013 तक चले इस अभियान में 20 प्रांतों में 4088 स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए गए।
इन कार्यक्रमों में चीन से संबंधित 11 लाख हस्त-पत्रक एवं प्रो. भगवती प्रकाश द्वारा लिखित 1,20,000 पुस्तकें (हिन्दी व अन्य प्रांतीय भाषाओं) वितरित की गई एवं समाज के अनेक संगठनों का सहयोग प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हुई। देश के मीडिया/समाचार पत्रों ने प्रमुखता से इन कार्यक्रमों को स्थान दिया। मंच के हजारों कार्यकर्ताओं ने इसमें सक्रिय रूप से योगदान किया। 
इस अभियान के फलस्वरूप देश की सरकार, राजनेता, मीडिया, अफसरशाही, सामाजिक संगठन एवं जनता का ध्यान इस संकट की ओर व्यापक स्तर पर आकृष्ट हुआ तथा आज बच्चे-बच्चे की जुबान पर चीन के संबंध में चर्चा की जा रही है। 

इसके अतिरिक्त और भी बाते है जो हमने मिल कर की. वैश्विक सम्मेलनों के समय अपनी तेयारी और सरकार की भी तेयारी, दोनों हमने की. इसी प्रकार बी टी बेंगन से लेकर जी एम् फूड्स की लडाई, न्हूमि अदिग्रहण से लेकर कोका कोला पेप्सी की लूट की नीतियों और स्वस्थ्य को धत्ता बताने वाली चालाकियो के खिलाफ हम खड़े और खड़े.

विकास का ढ़ाँचा भारतीय चिन्तन के आधार पर कैसा होना चाहिए? केवल वस्तु तक सीमित ना रहकर, इन विचारों को आन्दोलन रूप देना जरूरी है। विकास की भारतीय अवधारणा को लेकर स्वदेशी जागरण मंच आगे बढ़ रहा है। पूरी दुनिया में स्वदेशी आन्दोलन को मान्यता मिल चुकी है। स्वदेशी का आन्दोलन दुनिया का आधुनिकतम आन्दोलन है। अमेरिका सहित कई देशों में स्वदेशी का आन्दोलन चल रहा है। अमेरिकी संसद में ‘‘बी अमेरिकन, बाॅय अमेरिकन’’ का प्रस्ताव लाया गया है। स्वदेशी का विचार अर्थशास्त्र का आधुनिकतम विचार है। स्वदेशी का आन्दोलन आज अभिनन्दन का विषय बन गया है।

 

रक्षा क्षेत्र में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता

 


रक्षा क्षेत्र में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता

दुलीचंद कालीरमन

 ऑपरेशन सिंदूरभारतीय सैन्य इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है, जिसने केवल भारतीय सेना की रणनीतिक क्षमता को दर्शाया, बल्किमेक इन इंडियापहल के तहत स्वदेशी सैन्य साजो-सामान की प्रभावशीलता को भी प्रमाणित किया। भारत सरकार द्वारा शुरू की गईमेक इन इंडियायोजना का उद्देश्य देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उपयोग में आए स्वदेशी हथियारों, ड्रोन, संचार उपकरणों ने यह साबित किया कि भारत अब विदेशी उपकरणों पर निर्भर नहीं रहना चाहता, बल्कि आत्मनिर्भर और स्वावलंबी रक्षा शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है। चाहे ड्रोन युद्ध हो, मल्टी लेयर्ड एयर डिफेंस हो या इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, ऑपरेशन सिंदूर’ सैन्य अभियानों में तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की यात्रा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है।

ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि:

ऑपरेशन सिंदूर, एक सामरिक रूप से संवेदनशील और रणनीतिक अभियान था, जिसका लक्ष्य पाकिस्तान स्थित आंतकी शिविरों और दुश्मन की गतिविधियों पर निर्णायक प्रहार करना था। यह अभियान जटिल परिस्थितियों और उच्च जोखिम वाले इलाकों में संचालित किया गया। ऐसी परिस्थितियों में सैनिकों को उन्नत, विश्वसनीय और परिस्थितियों के अनुसार अनुकूल सैन्य साजो-सामान की आवश्यकता होती है। यहीं परमेक इन इंडियाके तहत विकसित उपकरणों ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की हैं।

भारत की वायु रक्षा प्रणाली ने सेना, नौसेना और मुख्य रूप से वायु सेना की रक्षा प्रणालियों को मिलाकर असाधारण तालमेल के साथ काम किया। इन प्रणालियों ने एक अभेद्य दीवार बनाई, जिसने पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई के प्रयासों को विफल कर दिया। भारतीय वायु सेना की एकीकृत वायु कमान एवं नियंत्रण प्रणाली (आई..सी.सी.एस.) ने सभी संसाधनों को एक साथ लाकर आधुनिक युद्ध के लिए महत्वपूर्ण नेटवर्क केन्द्रित परिचालन क्षमता प्रदान की।

मेक इन इंडिया सैनिक साजो-सामान की प्रमुख भूमिकाएं:

1. स्वदेशी हथियार प्रणाली:

‘मेक इन इंडिया’ के तहत पिनाका (मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर)धनुष (तोप), और ब्रह्मोस (मिसाइल सिस्टम) जैसी स्वदेशी हथियार प्रणालियाँ निर्णायक साबित हुईं। ये सभी हथियार रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारत फोर्ज, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड आदि भारतीय संस्थानों द्वारा निर्मित हैं। इनके उपयोग से भारत ने यह दिखाया कि वह आधुनिक तकनीक से लैस युद्ध उपकरणों का निर्माण स्वयं कर सकता है।

2. ड्रोन और निगरानी प्रणाली:

मेक इन इंडियाके अंतर्गत भारत ने ड्रोन तकनीक में काफी प्रगति की है। स्वदेशी ड्रोनस्विच, ‘नागएंटी टैंक गाइडेड मिसाइल से लैस UAVs, और लो-एल्टिट्यूड निगरानी ड्रोन का उपयोग किया गया। इनसे दुश्मन की गतिविधियों की निगरानी करना, लक्ष्यों की पहचान और सटीक हमला संभव हुआ। यह रणनीतिक बढ़त का बड़ा कारण बना। आकाशतीर प्रणाली ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के वायु रक्षा नेटवर्क का एक हिस्सा थी, इस प्रणाली ने पाकिस्तान के ड्रोन और मिसाइल हमलों को प्रभावी ढंग से विफल कर दिया था।

3. संचार और नियंत्रण प्रणाली:

किसी भी सैन्य अभियान के दौरान सैनिकों और कमांड सेंटर के बीच निर्बाध और सुरक्षित संचार अत्यंत आवश्यक होता है। इसके लिए TACTICAL COMMUNICATION SYSTEM (TCS) जैसे स्वदेशी रूप से विकसित संचार नेटवर्क सुरक्षित और गोपनीय संचार सुनिश्चित करता है। इस प्रणाली से सभी सैन्य इकाइयों को आपस में जोड़ने में अहम भूमिका होती है।

4. बख्तरबंद वाहन और परिवहन:

आज भारतीय सैन्य बल अर्जुन टैंकTATA Kestrel आर्मर्ड व्हीकल, और L&T द्वारा निर्मित इंफेंट्री फाइटिंग व्हीकल्स का प्रभावी उपयोग कर रहें है। इन सभी वाहनों की विशेषता यह है कि ये कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भी कुशलता से काम करते हैं। भारतीय सेना ने अपने इन स्वदेशी संसाधनों के माध्यम से दुर्गम इलाकों में तेज़ी से पहुंच बनाने और सुरक्षा बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है।

मेक इन इंडियासे आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम:

मेक इन इंडियापहल के तहत निर्मित इन सैन्य उपकरणों ने केवल भारत की सैन्य ताकत को बढ़ाया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता की छवि को भी मज़बूत किया। ऑपरेशन सिंदूर में इनका उपयोग यह दर्शाता है कि भारत अब आयातित हथियारों पर निर्भर नहीं है, बल्कि युद्धकालीन आवश्यकताओं के अनुसार त्वरित रूप से उपकरणों का निर्माण और प्रयोग कर सकता है। इसके अतिरिक्त स्वदेशी रक्षा उत्पादन से विदेशी मुद्रा की बचत, स्थानीय रोजगार में वृद्धि, तकनीकी आत्मनिर्भरता का विकास, रक्षा क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहन को भी बढ़ावा मिला है

रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भूमिका:

मेक इन इंडियाकी सफलता में निजी क्षेत्र का योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। कई कंपनियों जैसे L&T, टाटा डिफेंस, भारत फोर्ज, और महिंद्रा डिफेंस ने रक्षा उत्पादन में नवाचार और दक्षता को बढ़ाया है। उनके द्वारा बनाए गए उपकरण केवल गुणवत्ता में विदेशी उपकरणों के समकक्ष हैं, बल्कि लागत और रणनीतिक क्षमता के लिहाज़ से भी लाभकारी हैं।

रक्षा निर्यात में नया कीर्तिमान

स्वदेशी रक्षा उत्पादन ने केवल घेरलू जरूरतों को पूरा किया अपितु वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के रक्षा निर्यात ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इस अवधि में रक्षा निर्यात ₹23,622 करोड़ (लगभग $2.76 बिलियन) तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 12.04% की वृद्धि दर्शाता है। इसमें 2013-14 के ₹686 करोड़ के मुकाबले, 2024-25 में रक्षा निर्यात में 34 गुना वृद्धि हुई है। 

वर्ष 2024-25 में निजी क्षेत्र ने ₹15,233 करोड़ और सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनियों (DPSUs) ने ₹8,389 करोड़ का योगदान दिया। विशेष रूप से, DPSUs के निर्यात में 42.85% की वृद्धि दर्ज की गई है। 

भारत सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्र में उत्पादन हेतु  वित्तीय वर्ष 2024-25 में 1,762 निर्यात लाइसेंस जारी किए गए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 16.92% अधिक है। साथ ही, निर्यातकों की संख्या में 17.4% की वृद्धि हुई है।

भविष्य की दिशा:

 

भारत सरकार ने AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) के निर्माण को भी हरी झंडी दे दी है जो भारत का एक स्वदेशी 5वीं पीढ़ी का स्टील्थ मल्टीरोल फाइटर जेट प्रोजेक्ट है, जिसे ADA (Aeronautical Development Agency) और HAL (Hindustan Aeronautics Limited) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है जो नए भारत की सामरिक ताकत का प्रतीक होगा इसका उद्देश्य भारतीय वायुसेना को एक अत्याधुनिक, आत्मनिर्भर और वैश्विक मानकों वाला लड़ाकू विमान प्रदान करना है, जो रूस के Su-57, अमेरिका के F-22 Raptor और चीन के J-20 जैसे विमानों की टक्कर में हो। फाइटर जेट तेजस के लिए कावेरी इंजन के भी प्रायोगिक चरण से आगे बढने की सम्भावना है जिससे भारत का अपना फाइटर जेट इंजन हो ताकि वायुसेना के लिए स्वदेशी फाइटर जेट ‘तेजस’ की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके

 

निष्कर्ष:

ऑपरेशन सिंदूर नेमेक इन इंडियाके तहत विकसित सैन्य साजो-सामान की उपयोगिता और विश्वसनीयता को सिद्ध कर दिया। इस अभियान ने केवल भारत की सैन्य क्षमता को सशक्त किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। भारतीय सैनिकों को जब स्वदेशी हथियारों और तकनीक से लैस किया जाता है, तो वे अधिक आत्मविश्वास, सामर्थ्य और रणनीतिक बढ़त के साथ कार्य करते हैं। इसके अलावा भविष्य में भारत को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर डिफेंस, उच्च गति मिसाइल तकनीक, स्वचालित और मानव रहित हथियार प्रणाली, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियाँ आदि क्षेत्रों में और प्रगति करनी होगी

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