रक्षा क्षेत्र में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता
दुलीचंद कालीरमन
‘ऑपरेशन
सिंदूर’ भारतीय
सैन्य इतिहास
में एक
स्वर्णिम अध्याय
है, जिसने
न केवल
भारतीय सेना
की रणनीतिक
क्षमता को
दर्शाया, बल्कि
‘मेक इन
इंडिया’ पहल
के तहत
स्वदेशी सैन्य
साजो-सामान
की प्रभावशीलता
को भी
प्रमाणित किया।
भारत सरकार
द्वारा शुरू
की गई
‘मेक इन
इंडिया’ योजना
का उद्देश्य
देश को
रक्षा क्षेत्र
में आत्मनिर्भर
बनाना है।
ऑपरेशन सिंदूर
के दौरान
उपयोग में
आए स्वदेशी
हथियारों, ड्रोन,
संचार उपकरणों
ने यह
साबित किया
कि भारत
अब विदेशी
उपकरणों पर
निर्भर नहीं
रहना चाहता,
बल्कि आत्मनिर्भर
और स्वावलंबी
रक्षा शक्ति
बनने की
दिशा में
अग्रसर है।
चाहे ड्रोन
युद्ध हो,
मल्टी लेयर्ड
एयर डिफेंस
हो या
इलेक्ट्रॉनिक युद्ध,
‘ऑपरेशन
सिंदूर’ सैन्य
अभियानों में
तकनीकी आत्मनिर्भरता
की दिशा
में भारत
की यात्रा
में एक
मील का
पत्थर साबित
हुआ है।
ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि:
ऑपरेशन सिंदूर, एक सामरिक रूप से संवेदनशील और रणनीतिक अभियान था, जिसका लक्ष्य पाकिस्तान स्थित आंतकी शिविरों और दुश्मन की गतिविधियों पर निर्णायक प्रहार करना था। यह अभियान जटिल परिस्थितियों और उच्च जोखिम वाले इलाकों में संचालित किया गया। ऐसी परिस्थितियों में सैनिकों को उन्नत, विश्वसनीय और परिस्थितियों के अनुसार अनुकूल सैन्य साजो-सामान की आवश्यकता होती है। यहीं पर ‘मेक इन इंडिया’ के तहत विकसित उपकरणों ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की हैं।
भारत
की वायु
रक्षा प्रणाली
ने सेना,
नौसेना और
मुख्य रूप
से वायु
सेना की
रक्षा प्रणालियों
को मिलाकर
असाधारण तालमेल
के साथ
काम किया।
इन प्रणालियों
ने एक
अभेद्य दीवार
बनाई, जिसने
पाकिस्तान की
जवाबी कार्रवाई
के प्रयासों
को विफल
कर दिया।
भारतीय वायु
सेना की
एकीकृत वायु
कमान एवं
नियंत्रण प्रणाली
(आई.ए.सी.सी.एस.)
ने सभी
संसाधनों को एक
साथ लाकर
आधुनिक युद्ध
के लिए
महत्वपूर्ण नेटवर्क
केन्द्रित परिचालन
क्षमता प्रदान
की।
मेक इन इंडिया सैनिक साजो-सामान की प्रमुख भूमिकाएं:
1. स्वदेशी हथियार प्रणाली:
‘मेक इन इंडिया’ के तहत पिनाका (मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर), धनुष (तोप), और ब्रह्मोस (मिसाइल सिस्टम) जैसी स्वदेशी हथियार प्रणालियाँ निर्णायक साबित हुईं। ये सभी हथियार रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारत फोर्ज, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड आदि भारतीय संस्थानों द्वारा निर्मित हैं। इनके उपयोग से भारत ने यह दिखाया कि वह आधुनिक तकनीक से लैस युद्ध उपकरणों का निर्माण स्वयं कर सकता है।
2. ड्रोन और निगरानी प्रणाली:
‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत भारत ने ड्रोन तकनीक में काफी प्रगति की है। स्वदेशी ड्रोन ‘स्विच’, ‘नाग’ एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल से लैस UAVs, और लो-एल्टिट्यूड निगरानी ड्रोन का उपयोग किया गया। इनसे दुश्मन की गतिविधियों की निगरानी करना, लक्ष्यों की पहचान और सटीक हमला संभव हुआ। यह रणनीतिक बढ़त का बड़ा कारण बना। आकाशतीर प्रणाली ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के वायु रक्षा नेटवर्क का एक हिस्सा थी, इस प्रणाली ने पाकिस्तान के ड्रोन और मिसाइल हमलों को प्रभावी ढंग से विफल कर दिया था।
3. संचार और नियंत्रण प्रणाली:
किसी भी सैन्य अभियान
के दौरान सैनिकों और कमांड सेंटर के बीच निर्बाध और सुरक्षित संचार अत्यंत आवश्यक होता है। इसके लिए TACTICAL COMMUNICATION SYSTEM (TCS) जैसे स्वदेशी रूप से विकसित संचार नेटवर्क सुरक्षित और गोपनीय संचार सुनिश्चित करता है। इस प्रणाली से सभी सैन्य इकाइयों को आपस में जोड़ने में अहम भूमिका होती है।
4. बख्तरबंद वाहन और परिवहन:
आज भारतीय सैन्य बल ‘अर्जुन टैंक’, TATA Kestrel आर्मर्ड व्हीकल, और L&T द्वारा निर्मित इंफेंट्री फाइटिंग व्हीकल्स का प्रभावी उपयोग कर रहें है। इन सभी वाहनों की विशेषता यह है कि ये कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भी कुशलता से काम करते हैं। भारतीय सेना ने अपने इन स्वदेशी संसाधनों के माध्यम से दुर्गम इलाकों में तेज़ी से पहुंच बनाने और सुरक्षा बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है।
‘मेक इन इंडिया’ से आत्मनिर्भरता
की दिशा में कदम:
‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत निर्मित इन सैन्य उपकरणों ने न केवल भारत की सैन्य ताकत को बढ़ाया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता की छवि को भी मज़बूत किया। ऑपरेशन सिंदूर में इनका उपयोग यह दर्शाता है कि भारत अब आयातित हथियारों पर निर्भर नहीं है, बल्कि युद्धकालीन आवश्यकताओं के अनुसार त्वरित रूप से उपकरणों का निर्माण और प्रयोग कर सकता है। इसके अतिरिक्त स्वदेशी रक्षा उत्पादन से विदेशी मुद्रा की बचत, स्थानीय रोजगार में वृद्धि, तकनीकी आत्मनिर्भरता
का विकास, रक्षा क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहन को भी बढ़ावा मिला है।
रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भूमिका:
‘मेक इन इंडिया’ की सफलता में निजी क्षेत्र का योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। कई कंपनियों जैसे L&T,
टाटा डिफेंस, भारत फोर्ज, और महिंद्रा डिफेंस ने रक्षा उत्पादन में नवाचार और दक्षता को बढ़ाया है। उनके द्वारा बनाए गए उपकरण न केवल गुणवत्ता में विदेशी उपकरणों के समकक्ष हैं, बल्कि लागत और रणनीतिक क्षमता के लिहाज़ से भी लाभकारी हैं।
रक्षा निर्यात में नया कीर्तिमान
स्वदेशी
रक्षा उत्पादन
ने न
केवल घेरलू
जरूरतों को
पूरा किया
अपितु वित्तीय
वर्ष 2024-25 में भारत
के रक्षा
निर्यात ने
एक नया
कीर्तिमान स्थापित
किया है। इस अवधि
में रक्षा
निर्यात ₹23,622 करोड़ (लगभग
$2.76 बिलियन)
तक पहुंच
गया, जो पिछले
वर्ष की
तुलना में
12.04% की
वृद्धि दर्शाता
है।
इसमें 2013-14
के ₹686 करोड़ के
मुकाबले, 2024-25 में रक्षा
निर्यात में
34 गुना
वृद्धि हुई
है।
वर्ष
2024-25 में निजी
क्षेत्र ने
₹15,233 करोड़
और सार्वजनिक
क्षेत्र की
रक्षा कंपनियों
(DPSUs) ने
₹8,389 करोड़
का योगदान
दिया। विशेष
रूप से,
DPSUs के निर्यात
में 42.85% की वृद्धि
दर्ज की
गई है।
भारत सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्र में उत्पादन हेतु
वित्तीय वर्ष
2024-25 में
1,762 निर्यात
लाइसेंस जारी
किए गए,
जो पिछले
वर्ष की
तुलना में
16.92% अधिक
है। साथ
ही, निर्यातकों की
संख्या में
17.4% की
वृद्धि हुई
है।
भविष्य की दिशा:
भारत सरकार ने AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) के निर्माण को भी हरी झंडी दे दी है जो भारत का एक स्वदेशी 5वीं पीढ़ी का स्टील्थ मल्टीरोल फाइटर जेट प्रोजेक्ट है, जिसे ADA (Aeronautical Development Agency) और HAL
(Hindustan Aeronautics Limited) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है जो नए भारत की सामरिक ताकत का प्रतीक होगा । इसका उद्देश्य भारतीय वायुसेना को एक अत्याधुनिक, आत्मनिर्भर और वैश्विक मानकों वाला लड़ाकू विमान प्रदान करना है, जो रूस के Su-57, अमेरिका के F-22 Raptor और चीन के J-20 जैसे विमानों की टक्कर में हो। फाइटर जेट तेजस के लिए कावेरी इंजन के भी प्रायोगिक चरण से आगे बढने
की सम्भावना है जिससे भारत का अपना फाइटर जेट इंजन हो ताकि वायुसेना के लिए स्वदेशी
फाइटर जेट ‘तेजस’ की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके ।
निष्कर्ष:
ऑपरेशन सिंदूर ने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत विकसित सैन्य साजो-सामान की उपयोगिता और विश्वसनीयता को सिद्ध कर दिया। इस अभियान ने न केवल भारत की सैन्य क्षमता को सशक्त किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। भारतीय सैनिकों को जब स्वदेशी हथियारों और तकनीक से लैस किया जाता है, तो वे अधिक आत्मविश्वास, सामर्थ्य और रणनीतिक बढ़त के साथ कार्य करते हैं। इसके अलावा भविष्य में भारत को आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस और साइबर डिफेंस, उच्च गति मिसाइल तकनीक, स्वचालित और मानव रहित हथियार प्रणाली, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियाँ आदि क्षेत्रों में और प्रगति करनी होगी।
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