Thursday, January 31, 2019

13 वां राष्ट्रीय सम्मेलन, मदुरै

विषयः 13 वां राष्ट्रीय सम्मेलन, मदुरै- तमिलनाडू (18-20 जनवरी 2019) की कार्यवाही एवं लिए गए निर्णय




मान्यवर,

दिनांक 18 जनवरी 2019 को स्वदेशी जागरण मंच का 13 वां राष्ट्रीय सम्मेलन 'आर.एल. ग्रुप ऑफ एजुकेशनल इंस्टीटयूशन, टी.वी.आर. नगर, अरूपुकोट्टई, मेन रोड़, मदुरै, तमिलनाडु -625022 में 'स्वदेशी भाव फिर जगे' गीत के साथ प्रातः 10 ः 00 बजे प्रारंभ हुआ. स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक श्री अरूण ओझा, मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक गण श्री सरोज मित्र, डाॅ. अश्वनी महाजन, प्रो. बी.एम. कुमारस्वामी, श्री आर.सुन्दरम व राष्ट्रीय संगठक श्री कश्मीरी लाल सहित उद्योगपति व मुख्य अतिथि श्री मुत्तु जी, स्वद. चिदम्बरम पिल्लै के पौत्र श्री चिदम्बरम जी, भारतीय मजदूर संघ से श्री पवन कुमार तथा विद्या भारती से श्री जे.आर. जगदीश ने दीप प्रज्ज्वलन कर सम्मेलन का उद्घाटन किया.

उद्घाटन सत्रः श्री आर.सुन्दरम ने सभी अधिकारीगण एवं प्रतिनिधियों का मदुरै में सम्मेलन हेतु पधारने पर संक्षिप्त स्वागत एवं उद्बोधन किया. आयोजन समिति के प्रमुख श्री सतीश कुमार ने इस सम्मेलन की भूमिका व भारत में स्वदेशी अभियान की आवश्यकता के बारे में बताया. श्री दीपक शर्मा 'प्रदीप' (अ.भा. प्रचार प्रमुख) ने प्रचार विभाग की सूचनाएं तथा जानकारियां देते हुए बताया कि स्वदेशी जागरण मंच के इस सम्मेलन का सोशल मीडिया पर लाईव प्रसारण हो रहा है.

श्री चिदम्बरमः मुख्य अतिथि ने अपना व्याख्यान हिन्दी , तमिल व अंग्रेजी भाषा में दिया. उन्होंने कहा मेरे दादाजी स्व. चिम्बरम पिल्ले ने 1906 में पहला स्टीमर जहाज चलाया था. वे गंगाधर तिलक को अपना गुरू मानते थे. पिल्लै जी वकील और यूनियन लीडर थे. उन्हें भारत का पहला स्वदेशी जहाजरानी निर्माता भी कहा जाता है.

श्री मुत्तु जीः जो तिलों के तेल के उत्पादक '' इदीएम (हृदय) बांड '' के मालिक ने बताया कि हमनें तिलों के तेल के विषय में न केवल भारत को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग किया, बल्कि निर्यात भी किया है. हम सालाना 7000 करोड़ का टर्नओवर कर रहे है, इससे रोजगार व समृद्धि का स्वदेशी प्रयत्न सफल हो रहा है.
श्री अजय पत्कीः अखिल भारतीय विचार विभाग प्रमुख श्री अजय पत्की जी ने स्वदेशी की विकास यात्रा पर प्रकाश डाला. उन्होंने स्वदेशी के सफल अभियानों व संघर्ष यात्रा से प्रतिनिधियों को परिचित कराया. 1993 के स्वदेशी संपर्क अभियान से लेकर इस वर्ष रोजगार पर हुई मुंबई की गोष्ठी तक का स्वदेशी जागरण मंच का इतिहास बताया. मंच के प्रथम संयोजक डाॅ. मा.गो. बोकरे द्वारा लिखित 'हिन्दू इक्नोमिक्स', अमरीकी कंपनी एनराॅन की बिजली परियोजना का विरोध, मछुवारों की रक्षा हेतु हुई सागर यात्रा, डब्ल्यूटीओ में मंच के कार्यकर्ताओं की उपस्थिति, खुदरा व्यापारियों की सुरक्षा हेतु हुए जुटान, जीएम फसलों को विरोध, चाईनीज वस्तुओं के बहिष्कार का अभियान के बारे में विस्तार से बताया.

श्री अरूण ओझा ने वर्ष भर की मंच की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला. जिसमें रोजगार, पर्यावरण व परिवार विषयों पर हुए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम, विचार वर्गों की जानकारियां व ई-काॅमर्स - फ्लिपकार्ट-वालमार्ट डील पर विरोध आदि के बारे में अवगत कराया. उन्होंने आगे कहा कि हमें कृषि, बेरोजगारी, चिकित्सा व पर्यावरण का विचार करते हुए विकास के ढांचे को बदलना होगा. भारतवर्ष के पास इस स्थायी विकास के माॅडल का पुराना अनुभव है.

श्री श्री रविशंकर महाराजः श्री श्री रविशंकर जी महाराज व मंच पर उपस्थित अधिकारीगणों द्वारा तीन पुस्तकों (स्वदेशी विकास यात्रा, आरसीईपी व विश्व व्यापार युद्ध) का विमोचन हुआ, उसके बाद उन्होंने प्रतिनिधियों का मार्गदर्शन किया. उन्होंने अपने आशीर्वाद भाषण में कहा कि भारत में विविधता में एकता है. संपूर्ण भारत व दुनिया के कई देशों में 'ऊं नमः शिवायः' गूंजता है. हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए. आज संस्कृतिक गुलामी से मुक्त होने की आवश्यकता है. भारत विश्व गुरू बनेगा. आज हमारे योग को दुनिया में सम्मान मिला है. महंगा हो तो भी हमें स्वदेशी वस्तु की खरीदनी चाहिए.

कार्यवृत्तः विभिन्न प्रांतों के प्रांत संयोजकों, प्रमुखों ने अपने-अपने प्रांत की वर्ष भर में हुई गतिविधियों एवं कार्यक्रमों की जानकारी दी. उन सबके अनुसार देश भर में सभी 25 प्रांतों व लगभग 400 जिलों में स्वदेशी जागरण मंच की ईकाईयां सक्रिय है. अधिकांश प्रांतों में विचार वर्ग, स्वदेशी सप्ताह (25 सितंबर -2 अक्टूबर), स्वदेशी दिवस-बाबू गेनू बलिदान दिवस (12 दिसंबर) के कार्यक्रमांे का आयोजन होता है. इस वर्ष 10 नवंबर को दिल्ली में हुए राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के जन्मदिवस पर हुई भव्य नागरिक गोष्ठी विशेष उल्लेखनीय है. जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डाॅ. मोहन भागवत जी का विशेष रूप से मार्गदर्शन हुआ. इसी तरह ओडिसा में नदियों पर हुई गोष्ठियां भी विशेष चर्चा में रही. 'तब खादी-अब खाद' विषय पर भी अनेक स्थानों पर कार्यक्रम हुए. पर्यावरण व परिवार पर देश भर में बैठकें, कार्यक्रम व गोष्ठियां हुई.

रोजगार विषय पर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कार्यक्रम / गोष्ठियां हुई. विशेष रूप से चण्डीगढ़, उदयपुर, दिल्ली व मुंबई में उपकुलपतियों सहित कृषि व उद्योग जगत के प्रमुख लोगों ने भारत में रोजगार वृद्धि पर चिंतन, मंथन किया. हरियाणा में सभी 22 जिलों में जिला सम्मेलन आयोजित किये गये. इसके अलावा झारखंड, ओडिसा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा में भव्य स्वदेशी मेलों को आयोजन भी संपन्न हुआ. स्टार्ट-अप व लघु ऋण वितरण की गतिविधियां भी अनेक प्रांतों में चल रही है व बढ़ रही है. कुल मिलाकर प्रत्येक प्रांत में कुछ न कुछ विशेष कार्यक्रम आयोजित किये है. इसके अतिरिक्त भी स्वदेशी विकास यात्रा, रोजगार व स्वदेशी पथ, मुक्त व्यापार समझौता (त्ब्म्च्) व विश्व व्यापार युद्ध पर लघु पुस्तिकाओं के प्रकाशन की जानकारी भी कार्यवृत्त में आयी.


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पारित प्रस्तावः 1. घुसपैठ का देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव - श्री अमलान कुसुम घोष ने अंग्रेजी व श्री मनोज कुमार सिंह ने हिन्दी में वाचन किया.
2. भारत के हित में नहीं है आरसीईपी (16 देशों का मुक्त व्यापार समझौता) - डाॅ. अशुतोष ने अंग्रेजी व डाॅ. अश्वनी महाजन ने हिन्दी में वाचन किया.
3. सरकार लाए एक मजबूत ई-काॅमर्स नीति - डाॅ. राघवेंद्र चंदेल ने हिन्दी में वाचन किया.
4. स्वदेशी विकास माॅडल ही समाधान - श्री महादेवय्या ने अंग्रेजी व श्री अनंदा शंकर पाणीग्रही ने हिन्दी में वाचन किया.

अखिल भारतीय विचार वर्गः इस वर्ष देश में 5 विभिन्न स्थानों पर स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय विचार वर्ग संपन्न हुए. जिसमें देश भर से इन विचार वर्गों में 779 कार्यकर्ता उपस्थित हुए तथा सभी विचार वर्गों में मंच के अखिल भारतीय पदाधिकारियों एवं विषय विशेषज्ञों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ. उत्तर क्षेत्र व राजस्थान का वर्ग कुरूक्षेत्र (हरियाणा), उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड का वर्ग शहाजहांपुर, मध्य व पश्चिम क्षेत्र का वर्ग दुर्ग (छत्तीसगढ़), पूर्व का वर्ग तारापीठ (प.बंगाल) में संपन्न हुआ.

इस वर्ष संघर्ष वाहिनी की अ.भा. बैठक जयपुर (राज.) में संपन्न हुई, जिसमें 14 राज्यों के 98 कार्यकर्ता उपस्थित हुए.

विचार विभाग की अ.भा. बैठक मुंबई के यशवंत भवन में हुई, जिसमें 18 प्रंातों से 55 कार्यकर्ता सहभागी हुए.

प्रांतशः बैठकें - सभी प्रातों की 18 जनवरी की रात्रि में बैठकें हुई. जिनमें परिचय, पंजीकरण, आवास व्यवस्था के अतिरिक्त प्रांत में हुए कार्यक्रमांे की आपस में जानकारी की गई. इसके अतिक्ति स्वदेशी पत्रिका की सदस्यता, साहित्य बिक्री व आगामी प्रांत की योजना के भी सुझाव लिये गये. केंद्रीय पदाधिकारी विभिन्न प्रांतों की बैठकों में उपस्थित रहे.

समानान्तर सत्र - इस सम्मेलन में एक सत्र समानान्तर सत्र का रहा, जिनमें 5 विषय रहे.
1. देशी चिकित्सा एवं जनस्वास्थ्य पर श्री अरूण ओझा व डाॅ. बलदेव ने हमारी देशी चिकित्सा का उपयोग व महंगी होती चिकित्सा व्यवस्था से मुक्ति के विषयों पर चिंतन किया.
2. वर्तमान के वैश्विक, आर्थिक मुद्दे पर प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा, प्रो. बी.एम. कुमारस्वामी ने इस समय देश व दुनिया की आर्थिक परिस्थिति पर कार्यकर्ताओं से विस्तार से चर्चा की.
3. कृषि विषय पर श्री सतीश कुमार व श्री मोहन गांववासी ने चर्चा प्रारंभ की. कैसे कृषि को लाभ का विषय बना सकते है व शून्य बजट प्राकृतिक खेती, जैविक खेती तथा विषमुक्त खेती कैसे बनें, इस पर सबके अच्छे सुझाव आये.
4. महिला एवं परिवार पर श्रीमति अमिता पत्की ने घर परिवार में स्वदेशी का प्रचलन कैसे बढ़े, इस पर चर्चा की.
5. स्टार्ट-अप एवं स्किल डवलपमेंट पर डाॅ. अश्वनी महाजन व श्री कमलजीत ने गत एक वर्ष में हुए प्रयोग
तथा भविष्य में इसके महत्व पर सभी कार्यकर्ताओं से चर्चा की.

स्वदेशी संदेश यात्राः सम्मेलन के दूसरे दिन मदुरै नगर में एक भव्य स्वदेशी संदेश रैली का आयोजन हुआ. जिसमें सभी प्रांतों के कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने प्रांतों के बैनर व झंडे लेकर लगभग 2 किमी. लंबी यात्रा की. जिसका समापन वहां पर एक सार्वजनिक सभा में हुआ. जिसमें तमिलनाडू के स्थानीय लोगों ने भी अच्छी संख्या में सहभागिता की. इस सभा में तमिल टीवी कलाकार रंगराज पांडे ने हिन्दी व तमिल में भाषण कर समा बांध दिया. इसके अतिरिक्त झारखंड की बहन मधुमति, मजदूर संघ के श्री पवन कुमार, मंच के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री दीपक शर्मा 'प्रदीप', मंच के सहसंयोजक प्रो. बी.एम. कुमारस्वामी, श्री आर.सुन्दरम व अखिल भारतीय संघर्षवाहिनी प्रमुख अनन्दा शंकर पाणीग्रही ने संबोधित किया.

रात्रि में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया.



विशेष व्याख्यानः तीन विषयों पर विशेष उद्बोधन हुआ - 1. मंच के अ.भा. सहसंयोजक प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर चर्चा करते हुए कहा कि विश्व निर्माण में हमारा हिस्सा 2.1 प्रतिशत है, जबकि आबादी में 17.6 प्रतिशत है. वहीं जापान का हिस्सा 10 प्रतिशत है, जबकि विश्व आबादी में केवल 1.6 प्रतिशत है. हमें इंडस्ट्री ग्रोथ के साथ खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को भी बढ़ाना होगा. दूसरा विषय डाॅ. अश्वनी महाजन का आर्थिक मुद्दों पर सरकार से संवाद का था, जिसमें उन्होंने ई-काॅमर्स, विनिवेश, आर.सी.ई.पी. (मुक्त व्यापार समझौते), डिफोर्टिफिकेशन के बारे में विस्तार से बताया. तीसरा विषय श्री सतीश कुमार का था, जिसका विषय-'दत्तोपंत ठेंगड़ीः व्यक्तित्व एवं कृतित्व 'था. उन्होंने उनके जीवन के विभिन्न पहलूओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कम्युनिस्टों का मुखर विरोध करते हुए भी व्यक्तिगत संबंध उनसे बहुत अच्छे बनाए रखे.

इसके अतिरिक्त डाॅ. अमिता पत्की ने पर्यावरण, श्री नागरत्नम नायडू ने कृषि में सफल प्रयोग, श्री योगानंद काले ने स्वदेशी आंदोलन की पूर्व व भावी दिशा पर उद्बोधन किया.

संगठनात्मकः मंच के राष्ट्रीय संगठक श्री कश्मीरी लाल ने 20 जनवरी 2019 को संगठनात्मक पहलूओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सभी जिलों में स्वदेशी की इकाई स्थापित करने का आग्रह किया. इसके अलावा उन्होंने विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में चल रही गतिविधियों व उनकी नेटवर्किंग की जानकारी भी दी व इसे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. तीनों विषय रोजगार, पर्यावरण व परिवार इस वर्ष भी अपने प्रमुख विषय रहेंगे. उन्होंने 15 फरवरी से 15 मार्च तक अपने-अपने प्रांत व जिलों में संपर्क अभियान लेने की योजना करने का कहा, जिसमें विदेशी-स्वदेशी सामान की सूचि का वितरण अवश्य हो. इसके अलावा आगामी वर्ष में 10 नवंबर 2019 से 2020 तक श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की जन्मशताब्दी पर व्याख्यान माला व अन्य कार्यक्रमों को लेने का भी सुझाव दिया. उनका साहित्य पढ़ने, यूटयूब पर भाषण सुनने व अन्य तरीके से दत्तोपंत जी के जीवन व विचार को समझने का कार्यकर्ताओं को आग्रह किया.

आगामी कार्यक्रम - संगठनात्मक सत्र में श्री कश्मीरी लाल ने निम्नलिखित आगामी कार्यक्रमों की जानकारी प्रस्तुत की-
1. 15 फरवरी से 15 मार्च - संपर्क अभियान
2. कार्यसमिति बैठक - 30-31 मार्च 2019 (दिल्ली स्वदेशी कार्यालय)
3. राष्ट्रीय परिषद बैठक - 8-9 जून, पुणे (महाराष्ट्र)
4. स्वदेशी सप्ताह - 25 सितंबर से 2 अक्टूबर
5. श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्मशताब्दी कार्यक्रम - 10 नवंबर से प्रारंभ
6. 12 दिसंबर - बाबू गेनू बलिदान दिवस (स्वदेशी दिवस)

नई नियुक्तियां - राष्ट्रीय संयोजक श्री अरूण ओझा ने निम्नलिखित नई नियुक्तियों एवं दायित्वों की जानकारी दी-
अखिल भारतीय दायित्व: 1. श्री अजय पत्की- अ.भा. सहसंयोजक, 2. श्री सतीश कुमार- अ.भा. विचार विभाग प्रमुख व उत्तर क्षेत्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश संगठक (पूर्ववत), 3. डाॅ. राजकुमार चतुर्वेदी- अ.भा. सहविचार विभाग प्रमुख, 4. श्री कमलजीत- अ.भा. सह संपर्क प्रमुख व दिल्ली हरियाणा संगठक (पूर्ववत), 5. श्री वंदेशंकर- अ.भा. सह संघर्षवाहिनी प्रमुख, 6. श्री सरोज मित्र- अब वे कंेद्रीय कार्यालय व अर्थ विषयों में मार्गदर्शन करेंगे.

क्षेत्रीय दायित्वः उत्तर क्षेत्रः सह क्षेत्र संयोजक - डाॅ. राजकुमार मित्तल स राजस्थान के तीन प्रांत रहेंगे, राजस्थान क्षेत्र संयोजक- डाॅ. धर्मेंद्र दुबे स म.प्र. के तीन प्रांत रहेंगे, मध्य क्षेत्र संयोजक- डाॅ. राघवेन्द्र सिंह चंदेल (पूर्ववत).

प्रांतीय दायित्वः तमिलनाडू -1. श्री आदिशेषन- प्रांत संयोजक, 2. श्री चन्द्रन- प्रचार प्रमुख, 3. श्रीमित उमा मुरूगन- महिला प्रमुख, 4. श्री श्रीधरन- चैन्नई विभाग संयोजक, 5. श्री राजा जी- मदुरै विभाग संयोजक, 6. पूमारन- मदुरै सहविभाग संयोजक

कर्नाटक - 1. श्री महादेवेय्या- राष्ट्रीय परिषद सदस्य , 2. श्री विजय कृष्णा- सह प्रांत संयोजक, 3. प्रो. सत्यनारायण- सह-प्रांत विचार प्रमुख, 4. श्री बाबू जी - प्रांत कोष प्रमुख एवं राष्ट्रीय परिषद सदस्य

तेलंगाना - 1. श्री नागरत्नम नायडू- सह प्रांत संयोजक, 2. श्री सुरेश- रा.प. सदस्य

महाराष्ट्र - महाराष्ट्र को चार प्रांतों में विभाजित किया गया -
1. विदर्भ- प्रांत संयोजक-श्री शिरीश तारे, 2. देवगिरी- प्रांत संयोजक-श्री प्रताप मूले, 3. पश्चिम महाराष्ट्र- प्रांत संयोजक-श्री सुहास यादव

गुजरात - श्री चैतन्य भट्ट-सह प्रांत संयोजक

मध्य प्रदेश - म.प्र. को 3 प्रांतों में विभाजित किया गया - 1. महाकौशल - सह प्रांत संयोजक-श्री चंद्रमोहन साहू, 2. मध्य भारत - प्रांत संयोजक-श्री अरूषेंद्र शर्मा, सह प्रांत संयोजक- श्री अखिलेश तिवारी व श्री बाबूराम जी, 3. मालवा - प्रांत सहसंयोजक- श्री सुरेश बिचैलिया व श्री हरिओम जी

राजस्थान - अब तीन प्रांत होंगे व राजस्थान क्षेत्र कहलायेगा। 1. चित्तौड़ प्रांत - प्रांत संयोजक-श्री सतीश आचार्य, प्रांत सहसंयोजक-श्री भगवती जगेटिया, 2. जोधपुर प्रांत - प्रांत संयोजक-श्री अनिल वर्मा, प्रांत सहसंयोजक- श्री प्रमोद पालीवाल व श्री अनिल शर्मा, 3. जयपुर प्रांत - प्रांत संयोजक-डाॅ. शंकर लाल, प्रांत संहसंयोजक- श्री सुरेश खंडेलवाल, सहप्रांत संयोजक-श्री सुदेश सैनी।

हिमाचल प्रदेश - श्री गौतम कश्यप-प्रांत सहसंयोजक

हरियाणा - 1. प्रो. सोमनाथ सचदेव-सह प्रांत संयोजक, 2. श्री संजय सूरा-सह प्रांत संयोजक।

दिल्ली - श्री विकास चैधरी-सह प्रांत संयोजक

प.उ.प्र. - श्री लवकुश मिश्रा-सह प्रांत संयोजक

उत्तराखंड - श्री मोहन गाववासी- रा.प. सदस्य

उड़ीसा - 1. श्री आशुतोष मुखर्जी- रा.प. सदस्य, 2. श्री मनोरंजन राउत- प्रांत संघर्षवाहिनी प्रमुख

बिहार - दो प्रांत रहेंगे- 1. उत्तर बिहार- प्रांत संयोजक-श्री विजय सिंह, 2. दक्षिण बिहार- प्रांत संयोजक-श्री यदुनंदन प्रसाद

प.बंगाल - 1. श्रीमति वाणी सरकार- रा.प. सदस्य व प्रांत महिला प्रमुख, 2. श्री अमिय सरकार- रा.प. सदस्य

समारोपः 20 जनवरी को समारोप में सभी कार्यकर्ताओं की योजना की जानकारी देने के बाद राष्ट्रीय संयोजक श्री अरूण ओझा ने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि आगामी दिनों में अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का निर्वहन करने हेतु प्रबल जनजागरण करें। उन्होंने कहा कि अब विश्व में हवा उल्टी बहने लगी है। सीमा खोलने की बात करने वाले अब सीमाएं बंद करने मंे लगे हैं। निर्यात आधारित चीनी अर्थव्यवस्था के विकास की रूदन कथा लिखी जाने वाली है। अब अमरीका, यूरोप में स्वदेशी चलने लगा है। पश्चिम का सूरज डूब रहा है। शीघ्र ही दुनिया में स्वदेशी दृष्टिकोण का बदलाव आने वाला है।

वन्देमातरम् गान के साथ ही तेरहवां राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न हो गया।

सादर।

भवदीय

सतीश कुमार 
अ.भा. विचार विभाग प्रमुख
संगठकः उत्तर क्षेत्र, राजस्थान व मध्य प्रदेश

Saturday, January 26, 2019

करनाल : कर्ण नगरी से स्मार्ट सिटी तक का सफ़र

Clock-Tower-Karnal
Clock Tower Karnal

दानवीर कर्ण से जुड़ाव 

आज जब हम करनाल की ऐतिहासिक यात्रा पर नजर दौड़ाते हैं तो यह महाभारतकालीन शहर करनाल अपनी जड़ें इतिहास में तलाशता हुआ दानवीर कर्ण से जुड़ता है। कर्णताल, कर्ण झील, कर्ण पार्क, कर्ण स्टेडियम इसके प्रमाण हैं कि वर्तमान में भी यह अपनी पुरातन पहचान समेटे हुए है। कभी सुरक्षा की दृष्टि से चाक-चौबंद और किलेबंदी के रूप में करनाल शहर के पांच गेट अभी भी सलामत हैं। जिनमें बांसो गेट, जुंडला गेट, कलन्दरी गेट, कर्ण गेट व सुभाष गेट हैं। कभी करनाल इन्हीं गेटों में ही सिमटा शहर था, जिसमें एक बाजार होता था जो संकरी गलियों वाला भीड़भाड़ वाला सर्राफा बाजार था। पुराने ढर्रे की करियाने की दुकानें गुड़ मंडी और काठ मंडी तक सीमित थी।सर्राफा बाजार जो कभी तंग गलियों में था। आज चौड़ा बाजार कहलाता है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या के कारण चौड़ा बाजार की भीड़ में सिसकता रहता है।

शेरशाह सूरी मार्ग (जीटी रोड) कभी शहर के बीचों-बीच से गुजरता था।   बढ़ती भीड़ के कारण जो बाद में बाईपास के रूप में बनाया गया। करनाल की फैलावट  ने तथाकथित बाहरी राष्ट्रीय राजमार्ग को भी अपनी आगोश में ले लिया, जिससे शहर फिर से दो हिस्सोंं में बंट गया। अब पुलों के निर्माण से शहर के दोनों भागों की धमनियों को जोड़ा गया है।

हरियाणा के गठन के बाद की यात्रा 

1 नवम्बर 1966 को जब हरियाणा प्रांत बना, तब करनाल हरियाणा के हिस्से के सात जिलों में एक था। जिसमें से बाद में 1966 में कुरुक्षेत्र तो 1989 में कैथल तथा 1992 में पानीपत जिला बन गया। शुरूआत में जब करनाल में नियोजित शहरीकरण की शुरूआत हुई तो हाउसिंग बोर्ड कालोनी तथा सैक्टर-13 का विकास होना शुरू हुआ। लोगों ने शुरू में ज्यादा रूचि नहीं दिखाई। केवल कुछ नौकरीपेशा मध्यम वर्ग तथा पुराने शहर के व्यापारी वर्ग ने ही इन सैक्टरों में अपने आशियाने बनाए। लेकिन जब उदारीकरण की हवा यहां के ग्रामीण इलाकों, सरकारी नौकरशाह तथा व्यापारी वर्ग को लगी तो इस सोये से शहर ने करवट लेना शुरू कर दिया। एक के बाद एक सैक्टर बनना शुरू हो गए। जितने भी प्रशासनिक अधिकारी करनाल में आए, ज्यादातर ने करनाल को अपना निवास स्थान बना लिया। देखते ही देखते इन महंगे सैक्टर्स की तरफ झांकना भी मध्यम वर्ग के बूते से बाहर की बात हो गई। लोग आशियाने की तलाश में कुकुरमुत्ते की तरह उग आई अवैध कालोनियों में जाने लगे। आज भी करनाल की करीब 30 अनाधिकृत कालोनियां मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।

आधुनिकता की आबोहवा और संस्कृति 

इस दौरान करनाल के व्यापारिक प्रतिष्ठान भी तेजी से बढ़े। लिबर्टी जूतों का कारोबार देश-विदेश में फैल गया। ‘सुविधा’ एक दुकान से शुरू होकर एक ब्रांड व मॉल-संस्कृति का परिचायक बन गया। कुंजपुरा रोड जो कभी वीरान सी सड़क थी वो आज देशी-विदेशी ब्रांड के शोरूम का बाजार बन गया।
करनाल को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है। कृषि यंत्रों की मांग को पूरा करने के लिए  सैक्टर-3 इंडस्ट्रीयल ऐरिया में ऐसे सैंकड़ों कारखाने हैं।
करनाल के बीचोंबीच से बहने वाली मुगल नहर बाद में गंदे नाले में तबदील हो गई। करनाल विकास ट्रस्ट ने उसका जीर्णोद्धार करके मार्किट में बदल दिया जो आज करनाल की सबसे महंगी मार्किट है तथा उसके नीचे से गंदा नाला बहता है।
गुड़ मंडी व काठ मंडी की पंसारी व करियाने की दुकानें भी अब नए कलेवर व नई सज्जा के साथ हैं। गद्दी पर बैठने वाले बनिए अब कुर्सियों पर आ चुके हैं। हाथ तराजू की जगह इलेक्ट्रोनिक कांटों ने ले ली है। लेकिन आज भी माल-संस्कृति के साथ-साथ पुराने ढर्रे की पंसारी की दुकानें भी मिल जाएंगी। करनाल के बीचों बीच पुराना किला सरकारी दवाइयों के भण्डार में बदल चुका है|

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विकास की दौड़ 

करनाल शहर ने इन 54 सालों में काफी बदलाव देखे हैं।  जिला सचिवालय, तहसील, सैशन कोर्ट अब नए स्थानों पर जा चुके हैं। शहर के सिनेमा घरों को अपनी चहल-पहल खोकर वीरान होते व बैंक्वेट हालों में तबदील होते देखा है। कभी के.आर. प्रकाश, इंदर पैलेस, अशोका व नावल्टी आबाद रहते थे, लेकिन आज केवल नावल्टी सिनेमा ही कामुक फिल्मों के सहारे अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज के आस पास  अनेक निजी अस्पतालों ने भी अपने पैर पसार लिए हैं। कभी पश्चिमी यमुना नहर जो शहर की पश्चिमी हद को तय करती थी आज शहर के फैलाव को रोकने में खुद को असमर्थ हो गई है। सब्जी मंडी और अनाज मंडी दक्षिणी छोर पर विस्थापित हो चुकी हैं। उनकी जगह पर मल्टी लेवल पार्किंग बनाकर शहर के बाजार को राहत देने की योजना है। कर्ण ताल का पुनर्निर्माण  शहर की सुन्दरता का बढ़ा रहा है|
कर्ण-ताल
कर्ण ताल 

करनाल में स्थित कृषि व पशु संबंधित अनुसंधान संस्थान जिनमें केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान
, केंद्रीय गेहूं और जौं अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय पशु अनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान व राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान अपनी भूमिका निभा रहे हैं तथा अनेक वैज्ञानिक अनुसंधान हो रहे हैं।
शहर के कई गैर सरकारी संगठन भी अपनी गतिविधियां चलाते रहते हैं। कई साहित्यिक संस्थाएं भी साहित्य के साथ-साथ अपने वजूद को जिंदा रखे हुए हैं। सांझा साहित्य मंच, अपना विचार मंच, कारवाने-अदब, अखिल भारतीय साहित्य परिषद इनमें प्रमुख हैं।

‘स्मार्ट सिटी’ की दौड़ 

भारत सरकार की ‘स्मार्ट सिटी’ योजना की दौड़ में सड़कों, चौराहों का  सौंदर्यकरण किया जा रहा है। नगर निगम द्वारा आधुनिक सार्वजनिक शौचालयों व साईकिल सवारी को बढ़ावा देने के लिए ‘सांझी साइकिल’ योजना भी चलाई गई है लेकिन शहरवासी इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है। कुछ कुछ यही हाल सिटी बस सर्विस का है जो निरंतर घाटे में चल रही है| कहीं न कहीं इसके कार्यान्वन में भी कमी है|
करनाल में इन 54 सालों में होटल संस्कृति भी खूब फल-फूल रही है। पांच सितारा होटल नूर महलकरनाल हवेली, होटल ज्वैल्स, डीवेंचर, प्रेम प्लाजा शहर की पहचान बन चुके हैं। करनाल शहर आधुनिकता के साथ अपनी प्राचीन पहचान के साथ भी मजबूती से जुड़ा हुआ है।


                                                       दुलीचंद कालीरमन 
                                                            https://www.ramankaroznamcha.blogspot.com


Tuesday, January 22, 2019

स्वदेशी जागरण मंच - करनाल के जिला सम्मलेन की कुछ झलकियाँ




स्वदेशी जागरण मंच-करनाल : जिला सम्मलेन झलकियाँ




















स्वदेशी चिट्ठी



shri Kashmiri lal ji
श्रीमान कश्मीरी लाल जी 


shri Satish ji
श्रीमान सतीश जी 

एक श्रेष्ठविचार और  उसके प्रति समर्पण


एक श्रेष्ठविचार और  उसके प्रति समर्पण
व कर्मठता से मिलती है सफलता।
कल कश्मीरी लाल जी के साथ कन्याकुमारी जाना हुआ। मदुरई में स्वदेशी का सम्मेलन समाप्त करने के बाद स्वामी विवेकानंद शिला स्मारक पर जाकर कुछ नई ऊर्जा प्राप्त करने का विचार था। वहां पर जाने के बाद हम आपस में चर्चा कर रहे थे,की 1893 में,जब हवाई जहाज थे ही नहीं,समुद्री जहाज से 3 महीने लगते थे अमेरिका पहुंचने में, उस समय स्वामी विवेकानंद द्वारा वहां जाने का विचार करना,व उसमें सफल होना, यह कैसे संभव हुआ?
 क्योंकि भारत उस समय पराधीन था। स्वामी जी 32 वर्ष के युवा थे। अमेरिका जाकर दुनिया की सबसे बड़ी विद्वानों की सभा को संबोधित करने का विचार?!
कितनी बड़ी बात थी?कैसे सफल हुए स्वामीजी?



 इसी तरीके से जब संघ के पूर्व सरकार्यवाह एकनाथ रानाडे जी ने तमिलनाडु के इस आखरी छोर पर शिला स्मारक खड़ा करने का विचार किया(संगठन की योजना से),तो सफलता कैसे मिली?
 क्योंकि 1960- 62 में सारे तमिलनाडु में हिंदू,हिंदी विरोधी आंदोलन चल रहे थे। कन्याकुमारी के आसपास ईसाइयों की ही बस्तियां हैं।वहां जाकर भारत ही नहीं,दुनिया का एक श्रेष्ठ स्मारक निर्माण करना,वहां से प्रचारक निकालना, उसके लिए आवश्यकता से भी अधिक350 सांसदों के हस्ताक्षर करवा लेना, जबकि अपने तो बहुत कम ही थे।
 किंतु तभी,जब हम लौट रहे थे,तो स्वामी विवेकानंद जी का ही एक वाक्य पड़ा "किसी एक विचार को पूर्ण समर्पित हो जाओ! उसके लिए पूरा तन-मन लगा दो। वह विचार और तुम एक हो जाओ तो सफलता अवश्य मिलगी ही।"
हमने ध्यान में लिया कि इन दोनों महापुरुषों की सफलता का राज, यही श्रेष्ठ विचार व पूर्ण समर्पण ही है।

ऊपर : समुद्र के किनारे कश्मीरी लाल जी व मैं स्वयं ~सतीश कुमार 'स्वदेशी-चिट्ठी'

Monday, January 21, 2019

स्वदेशी चिट्ठी


स्वदेशी सम्मेलन का संदेश
 समृद्ध बनेगा भारत देश...
 गत 4 दिनों में तमिलनाडु के प्रसिद्ध मीनाक्षी देवी के नगर मदुरई में स्वदेशी जागरण मंच का 13वां स्वदेशी सम्मेलन संपन्न हुआ। जिसमें देश के लगभग सभी प्रांतों से कोई 1100 कार्यकर्त्ता (पुरुष व महिला) सम्मिलित हुए।
 सब तरफ उत्साह, सब तरफ स्वदेशी विचार का संदेश।

चार प्रमुख प्रस्ताव पारित हुए।
इन प्रस्तावों में भारत में चल रही घुसपैठ से आर्थिक नुकसान, फ्री ट्रेड समझौता (RCEP)भारत के हित में नहीं, रोजगार केंद्रीत स्वदेशी विकास मॉडल व E-Commerce की चर्चा हुई।
 स्वदेशी जागरण मंच गत 28 वर्षों से नियमित समय पर अपनी राष्ट्रीय परिषद,कार्यसमिति,सम्मेलन-सभा का आयोजन करता आया है। इसके कारण से भारत की स्वदेशी आवाज बन गया है- अपना स्वदेशी जागरण मंच

मदुरई के कार्यकर्ताओं ने भाषा की कठिनाइयों के बावजूद सारा सम्मेलन ऐसे संपन्न कराया जैसे परिवार में विवाह इत्यादि पर करते हैं।
विश्वविख्यात संत श्री श्री रविशंकर जी महाराज के आगमन से इसमें गरिमा और बढ़ गई पहले स्वदेशी जहाजरानी अभियान के अगुआ विवो चिदंबरम के पोत्र भी वहां पर आए।
स्वदेशी संदेश रैली भी भव्य तरीके से निकली। मानो मदुरै में एक ही स्वर गूंज रहा हो..जय स्वदेशी जय स्वदेशी।
नीचे:आ:भा: संयोजक अरुण ओझा श्री श्री रविशंकर महाराज को सम्मानित करते हुए व सम्मेलन में शामिल कार्यकर्ता।
~सतीश कुमार 'स्वदेशी-चिट्ठी'

Saturday, January 19, 2019

स्वदेशी चिट्ठी




लोन माफी या सरकारी सहायता से नहीं, बल्कि मेहनत,सूझबूझ,व देसी तरीके से अपनी आय में तेज वृद्धि कर रहे हैं ये किसान!




 मैं आज करनाल के उचानी गांव में था। वहां पर जिन किसानों ने अपनी छोटी कृषि से भी अच्छी कमाई की है,ऐसे किसानों का अनुभव कथन था।
 लाडवा के राजकुमार आर्य जी, शाहाबाद के हरभजन सिंह जी, जगत राम जी और सोनीपत के संजीव कुमार जी ने जब अपनी जमीन में, कैसे वह प्राकृतिक खेती से फसल की लागत कम करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं,बताया।
और फिर अपने गुड़ को ₹70 से 120 प्रति किलो तक बेचने के उन्होंने अनुभव सुनाए।
 अनेक किसानों ने अपनी कठिनाइयां भी रखी जिसका,उन्हीं किसानों ने ही समाधान भी बताया।
 मैं स्वयं हैरान था कि देसी गेहूं कैसे प्रति क्विंटल ₹5000 तक भी बिक सकती है!
 किंतु वहां वह प्रत्यक्ष गर्व से अपनी बात कह रहे थे।
तो वहां बात चली कि किसानों की ऋण माफी,सब्सिडी या सरकारी सुविधाओं से नहीं,बल्कि यदि किसान प्राकृतिक खेती से और वैज्ञानिक तरीके से खेती करता है,मार्केटिंग करता है, थोड़ी हिम्मत जुटाता है, तो वह अपनी आय को तिगुना करने के लिए किसी सरकार का मोहताज नहीं।



 सभी बहुत उत्साहित होकर और संकल्प लेकर गए की देसी गाय के गोबर से बनी प्राकृतिक खेती पर ही हम ध्यान देंगे।
 नीचे:किसान अपनी बात रखते हुए तथा मंच पर डॉ ओमप्रकाश अरोड़ा,प्रोफेसर ओ पी चौधरी के साथ ~सतीश कुमार- 'स्वदेशी-चिट्ठी'

Friday, January 18, 2019

स्वदेशी की अवधारणा और चीन की चुनौती

श्री दतोपंत ठेंगडी जी 

 इस लेख की मूल भावना स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की पुस्तक ‘तीसरा विकल्प’ से ली गई हैं



स्वदेशी क्या है ? 


स्वदेशी शब्द वर्तमान में सर्वप्रचलित हो गया है। यह केवल आर्थिक आंदोलन नही अपितु देश के आर्थिक पुर्ननिर्माण का साधन है। स्वदेशी का उदेश्य केवल आर्थिक विकास और राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं अपितु राष्ट्रीय चेतना का भाव इसमें समाहित है। स्वदेशी आर्थिक साम्राज्यवाद पर आधारित विश्व की नई व्यवस्था के खिलाफ एक आवाज़ है।
स्वदेशी का संबंध केवल वस्तुओं और सेवाओं के प्रयोग से न होकर राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता पाने तथा राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा करने हेतु बराबरी पर आधारित अतंराष्ट्रीय सहकारिता की भावना से है। यह स्वदेशी की भावना ही थी जिसके कारण ब्रिटिश लोगों ने अपने राष्ट्र प्रमुख को जर्मनी में बनी मर्सिडिज बेन्ज जैसी विलासिता पूर्ण कार खरीदने से रोका था। जब किसी भारतीय पत्रकार ने हो-ची-मिन्ह से प्रशन किया कि कमज़ोर कपड़े से बनी और फट चुकी पेन्ट क्यों पहनते हो तो मिन्ह ने जवाब दिया था कि उनका देश वियतनाम इतना ही खर्च कर सकता है। जब अमेरिका ने जापान पर कैलिफोर्निया के संतरों के लिए बाजार उपलब्ध कराने के लिए दबाव डाला तो जापानी खरीददारों ने एक भी संतरा नहीं खरीदा और इस तरह अमरीकी दबाव की नीति को हास्यस्पद बना दिया। भिन्न-भिन्न देशों के ये उदाहरण स्वदेशी की भावना को ही दर्षाते है। स्वदेशी केवल भौतिक वस्तुओं से जुड़ा आर्थिक मामला भर नहीं है बल्कि राष्ट्रीय जीवन को समेटने वाली व्यापक विचारधारा है।
स्वदेशी की भावना राष्ट्रभक्ति की भावना की बाह्य और व्यवहारिक अभिव्यक्ति है। राष्ट्रवाद या राष्ट्रभक्ति को अलगाव नहीं माना जा सकता क्योंकि भारतीय संस्कृति की एकात्म मानववादी परम्परा अंतराष्ट्रीयता को भी राष्ट्रवाद का ही अधिक व्यापक और विकसित रूप मानती है। देश भक्त कभी अंतराष्ट्रीयवाद के विरोधी नही होते। राष्ट्रीय आत्म निर्भरता (स्वदेशी) की उनकी दलील अतंराष्ट्रीय सहयोग का विरोध नहीं करती परन्तु शर्त यह है कि सहयोग समता पर आधारित है तथा हर देश एक दूसरे के राष्ट्रीय स्वाभिमान का आदर करें।

क्या केवल पश्च्मिकरण ही आधुनिकीकरण है ?


स्वदेशी के विचारक यह मानने को तैयार नहीं है कि केवल पस्चिम का प्रतिमान ही वैश्विक प्रगति और विकास का आदर्श है और दुनिया के सभी लोग उसका अनुसरण करें। वास्तव में हर देश  की अपनी संस्कृति होती है। हर देश की प्रगति और विकास का आर्दश उसकी अपनी सांस्कृतिक अनुरूपता से हो। केवल पश्चिमीकरण  ही आधुनिकीकरण नहीं है।
स्वदेशी का विचार दुनिया के सभी देशों  की विविध संस्कृतियों और राष्ट्रीय पहचान को मिटाने की पश्चिमी  चाल का विरोध करता है। किसी भी ताकतवर देश की अधिनायकवादी नीतियों को ‘पवित्र सिदान्त ’ मान लेना तो मष्तिष्क का दिवालियापन ही है। जो अमरीका कभी अपनी अधिनायकवादी नीतियों को लेकर दूसर देशों पर "सुपर-301" अधिनियम के तहत प्रतिबंध लगाकर अपने घरेलू उधोगों को सरंक्षण प्रदान करता था वही अमेरिका आज चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा देखकर बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के मामले में एक-दूसरे के सामने आ गये है।
वास्तव मे वैश्वीकरण  कोई पवित्र विचार नहीं है। बल्कि अपना ‘सरपल्स’ दूसरे देशों पर थोपने के विकसित देशों के तौर तरीके थे जिसके विनाशकारी परिणाम आज उदारीकरण के 25 सालों के बाद भारत में भी दिखाई दे रहे है। सरकारें एफ.डी.आई के नशे  में है। देश ‘असेबलिंग हब’ बन कर रह गया है। शेयर बाजार उफन रहा है। रोजगार को लेकर हा-हा कार मचा हुआ है। ‘रोजगार विहिन विकास’ की अर्थव्यवस्था बेरोजगारों का पेट नहीं भर सकती। उदारीकरण के इन 25 वर्षो के बाद क्या हम कह सकते है कि वर्तमान विश्व व्यापार व्यवस्था प्रतिस्र्पधा पर आधारित है। क्या राष्ट्र विशेष  की सरकारें घरेलू नीतियों में परिवर्तन कर अतंराष्ट्रीय व्यापारिक परिस्थितियों को प्रभावित नहीं करती है। एक विचारणीय प्रशन यह भी है कि विकास व तकनीक के मामलों में विश्व के सभी देशों  में इतनी असमानता है कि एक स्वस्थ व्यापार प्रतिस्र्पधा की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसी का परिणाम है कि विकासशील  देशों  के लघु और मझौले उद्योग चौपट हो रहे है। हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बाज़ार मात्र बनकर रह गये है।
कभी अमेरिका का उदारीकरण विष्व बैंक और अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोश  के पीछे छुपकर आया था। गैट और विश्व व्यापार संगठन भी उसके ही हथियार थे जो विश्व मे उदारीकरण के बीज बो रहे थे जिसकी फसल बाद में अमेरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ काट सके। लेकिन आज विश्व  व्यापार व्यवस्था करवट ले चुकी है। आज चीन अपनी अनैतिक वितिय नीतियों के कारण विश्व  व्यापार व्यवस्था में बहुत आगे निकल गया है तथा विश्व का विनिर्माण हब बन गया है। इसीलिए दुनिया के सभी बाजारों पर अपने वर्चस्व के लिए "ओबोर" पर भी कार्य शुरू कर दिया है। अमेरिका तथा विश्व  के अन्य देशों  में चीन के कारण घटते रोजगार स्थानीय सरकारों के लिए चिन्ता का कारण बन चुका है। आज पस्चिम  के उन विकसित देशों  में घरेलु उद्योगों को सरंक्षण देने व स्वदेशी की मांग उठ रही है। जो कभी वैश्वीकरण  और उदारीकरण के झड़ाबरदार होते थे।

चीन की चुनौती और भारत की स्थिति  


वर्तमान में चीन व्यापार नहीं अपितु आर्थिक युद्ध लड़ रहा है। भारत के संदर्भ में हमारे नीति निर्माताओं को एक बार फिर वर्तमान आर्थिक व्यवस्था पर विचार करना होगा क्योंकि चीन की अधिकतर कंपनियाँ वहाँ की सरकार द्वारा नियंत्रित है। भारत में एफ.डी.आई. के नाम पर व कम मूल्य पर संवेदनशील  क्षेत्रों में टेंडर हथिया कर चीनी कम्पनियां देश  को आन्तरिक और बाह्य चुनौतियाँ पेश  कर सकती है।

चीन के साथ 1962 से आज तक कहने को तो सीमायें शांत है। पर यह चीन की बदली हुई रणनीति है। करीब 130 करोड़ जनसंख्या का देश भारत जिसकी ज्यादातर आबादी युवा है वह बिना रोजगार व विनिर्माण क्षेत्र के आर्थिक गुलामी की तरफ बढ़ रहा है। अगर चीन के साथ भारत का व्यापार संतुलन देखा जाये तो यह अव्यवहारिक सा लगता है। साल 2015-16 के आकड़ों के अनुसार भारत चीन को सिर्फ 09 अरब डालर का निर्यात करता है बदले में चीन 61.7 अरब डालर का निर्यात भारत को करता है। इसका सीधा सा अर्थ है कि भारत को प्रतिवर्ष 52 अरब डालर यानि 3550 अरब रुपयों का व्यापार घाटा होता है। ध्यान देने की बात यह है कि यह व्यापार घाटा उस देश के साथ है जिससे हमारे संबंध सामान्य नहीं है। जो देष भारत को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान के आंतकवादी संगठनों को प्रत्यक्ष रूप से मदद करता है। हिन्द महासागर, अरब सागर व बंगाल की खाड़ी में हमारे पड़ोसी देशों  को वित्तिय साम्राज्यवाद के माध्यम से उनकी विदेश  नीति और अर्थ-व्यवस्था को प्रभावित करके वित्तिय ब्लैकमेल के माध्यम से भारत के हितों के खिलाफ खड़ा करता है।

यह आक्रामक वित्तिय साम्राज्यवाद चिर स्थायी नही है। यह विश्व -व्यवस्था को कुछ भी सकारात्मक नही दे रहा है। यह वित्तिय रूप से कमज़ोर तथा विकासशील देशों  आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते कदमों को रोकने वाला है। अगर सारी दुनिया का माल चीन में ही बनेगा तो बाकी दुनिया के लोगों को रोजगार कहां मिलेगा। बेरोजगारी अपराध की तरफ अग्रसर होती है। इससे स्थानीय सरकारो के प्रति असंतोष फैलेगा तथा कानून-व्यवस्था चरमरा जायेगी। चीन अपने वितिय संसाधनों के बल पर अपनी थानेदारी चमकायेगा तथा उसके दुष्परिणाम बाकी दुनिया को झेलने पड़ेगे।

कोई भी विश्व -व्यवस्था तब तक चिरस्थायी नही हो सकती जब तक वह बराबरी के नियमों पर आधारित ना हो। वर्तमान में प्रचलित ‘ग्लोबलाईजेशन’ पर भी यही सिदान्त  लागू होता है। आज जब उदारीकरण के 25 वर्ष पूरे हो चुके है। तब हमें इसके परिणामों के बारे में खुले मन से विचार करना चाहिए तथा उसके निष्कर्षो के आधार पर ही भविष्य की राह अपनानी चाहिए। ”वसुधैव कुटुम्बकम“ की भावना से प्रेरित हमारा भारत देश विश्व  को ऐसी व्यवस्था के लिए मार्ग-दर्शन  कर सकता है जिसमें सब देशों  के व्यापार रोजगार और उनके अधिकारों की रक्षा हो सके। एक-दूसरे की राष्ट्रीय संप्रभुता का आदर करने की भावना के साथ अंतराष्ट्रीय सहकारिता की भावना स्वदेशी का अंतिम लक्ष्य है। स्वदेशी के दृष्टिकोण को संकीर्ण कहकर दरकिनार नहीं किया जा सकता।

                                                     दुलीचंद कालीरमन
                                             https://www.ramankaroznamcha.com/




13वां राष्ट्रीय सम्मेलन-मदुरई (तमिलनाडु)



स्वदेशी जागरण मंच के सभी निष्ठावान यौद्धा 18 जनवरी से 20 जनवरी तक तमिलनाडु के मदुरई में स्वदेशी के मुद्दों को लेकर चिंतन और आगामी रणनीति की दिशा में विचार करेंगे। सम्मेलन में विशेष गरिमामय उपस्थिति श्री श्री रविशंकर जी की रहेगी। आर. एल. ग्रुप ऑफ एजुकेशनल इंस्टिट्यूट्स, टी.वी.आर. नगर मदुरै में आयोजित इस सम्मेलन में
श्रीमान अरुण ओझा जी, श्रीमान अश्वनी महाजन जी, श्रीमान कश्मीरी लाल जी, श्रीमान सतीश जी आदि पदाधिकारियों का मार्गदर्शन मिलेगा। स्वदेशी आंदोलन के प्रारंभ से ही स्वदेशी जागरण मंच राष्ट्रीय हितों के प्रति समर्पित रहा है। श्रीमान एच अधिसेशन जी -सम्मेलन प्रबंध प्रमुख, श्रीमती उषा मुरुगन-कार्यालय प्रभारी, श्रीमान बी.आर.श्रीधरन -प्रांत सहसंयोजक व तमिलनाडु के सामर्थ्यवान कार्यकर्ताओं  ने सम्मेलन की अच्छी व उत्तम व्यवस्था की है।

                                                                                                                     दुलीचंद कालीरमन
                                                                                                                                                             https://www.ramankaroznamcha.com/

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