बाबू गेनू : स्वदेशी का प्रथम शहीद |
बाबू गेनू को हम स्वदेशी के प्रथम शहीद के रूप में याद करते हैं | वह स्वदेशी आंदोलन जिसे सबसे पहले बंगाल विभाजन के विरोध में बंगाल की धरती पर शुरू किया गया था | बाद में स्वदेशी आंदोलन को महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जोड़कर इसे भारतीय जनमानस की आवाज बना दिया | यह विडंबना ही है कि महात्मा गांधी अपनी पूरी जिंदगी अहिंसा के मार्ग पर चले लेकिन उनके द्वारा चलाये नमक आंदोलन और स्वदेशी आंदोलन में भारतीय आम नागरिक बाबू गेनू, जो उस समय कांग्रेस पार्टी का एक कार्यकर्ता था, उसकी निर्मम हत्या महज इसलिए कर दी गई क्योंकि वह विदेशी वस्त्रों की लदी हुई लारी को मुंबई की बंदरगाह से देश के बाजारों में पहुंचने से रोकने की कोशिश कर रहा था |
बाबू गेनू महाराष्ट्र के पुणे जिले में महान्गुले गांव में एक साधारण और अत्यंत गरीब परिवार में पैदा हुए | जब बाबु गेनू दस वर्ष का ही था कि उनके पिताजी की मृत्यु हो गई | परिवार का सारा भार उनकी माता पर आ गया | बाबू गेनू केवल चौथी क्लास तक ही पढ़े थे बाद में उनके पिताजी की मृत्यु होने के कारण उनको मुंबई में रोजी-रोटी की तलाश में आना पड़ा | मुंबई में बाबू गेनू की माताजी भी मजदूरी करती थी तथा बाबू गेनू भी एक मजदूर के रूप में मुंबई की कपड़ा मिलों में काम करते थे|
उस समय महात्मा गांधी द्वारा नमक सत्याग्रह आरंभ किया गया था जिसका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में विशेष महत्व है | महात्मा गांधी से प्रेरित होकर देश के सामान्य युवा, वृद्ध, शिक्षित-अशिक्षित तथा ग्रामीण नागरिक भी आजादी के आंदोलन में अपना योगदान दे रहे थे | ऐसे समय पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जा रही थी | विदेशी शराब के दुकानों के सामने धरने प्रदर्शन और जुलूस निकाले जा रहे थे | कानूनों को तोड़ा जा रहा था | अंग्रेज सरकार द्वारा अनेक लोगों को बंदी बना लिया जाता था और उन पर मुकदमे चलाए जाते थे | इस प्रकार से अत्याचार से विदेशी शासन के विरुद्ध देशभर में आक्रोश फैल रहा था |
बाबू गेनू जो उस समय महज 22 वर्ष का था वह भी इन सत्याग्रही ओं में शामिल था | उसने अपने अध्यापक गोपीनाथ पंत से रामायण, महाभारत और छत्रपति शिवाजी की कहानियां सुनी थी | जिससे उसके मन में राष्ट्र गौरव की भावना बचपन में ही जाग गई थी | 12 दिसंबर 1930 को जब विदेशी वस्त्रों से लदा हुआ एक ट्रक मुंबई के बाजार में प्रवेश कर रहा था तो बाबू गेनू और उसके साथियों ने अपने अहिंसक विरोध प्रदर्शन से उसे रोकने का प्रयास किया | वहां पर पुलिस का कड़ा पहरा था और पुलिस ने उन्हें रास्ते से खदेड़ दिया लेकिन बाबू गेनू मन ही मन निश्चय कर चुके थे कि इन विदेशी वस्त्रों को किसी भी हालात में हम देश के बाजारों में बिकने नहीं देंगे | बाबू गेनू जानते थे कि यह विदेशी वस्त्र जब भारतीय बाजारों में जाएंगे तो यहां के मिल और हथकरघा उद्योग, जिनमें सामान्य जन को रोजगार प्राप्त होता है वह इन विदेशी वस्त्रों की भेंट चढ़ जाएगा |
बाबू गेनू एक ट्रक के सामने लेट गए | ट्रक ड्राइवर एक सिख जिसका नाम बलवीर सिंह था, उसने अपने ट्रक को रोक दिया | वहां मौजूद एक अंग्रेज सार्जेंट ने बलवीर सिंह को आदेश दिया कि वह ट्रक को आन्दोलनकारियों के ऊपर चढ़ा दे | लेकिन ट्रक ड्राइवर ने ऐसा करने से स्पष्ट मना कर दिया क्योंकि यह भारत के ही नागरिक हैं और एक भारतीय होने के नाते वह अपने देशवासियों की जान नहीं ले सकता था | अंग्रेज सार्जेंट ने झल्लाकर बलवीर सिंह को ट्रक से नीचे उतार दिया और खुद ट्रक चलाने लगा | अंग्रेज सार्जेंट ने ट्रक को बाबू गेनू के ऊपर चढाकर उसे कुचलने का प्रयास किया जिससे बाबू गेनू बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई |
आज जब हम बाबू गेनू को याद करते हैं तो उनकी उस समय की राजनीतिक और आर्थिक समझ के सामने नतमस्तक होते हैं, क्योंकि बाबू गेनू ने सन 1930 में ही समझ लिया था कि स्वदेशी का क्या महत्व है और यह विदेशी कंपनियां किस प्रकार हमारे उद्योग धंधों और रोजगार को लील जाती हैं |
आज जब हम वैश्वीकरण का आतंक अपने चारों तरफ देखते हैं तो यह आभास होता है कि बाबू गेनू ने इसका आभास बहुत पहले कर लिया था और महज २२ वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी |
स्वदेशी जागरण मंच जो स्वदेशी विचार को लेकर समाज और देश की परिस्थितियों के बारे में निरंतर विचार विमर्श करता रहता है | वह इस पुण्य आत्मा को प्रतिवर्ष 12 दिसंबर को नमन करता है | बाबू गेनू के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी कि हमें स्वदेशी के प्रति जो हमारा आग्रह है, वह हमारे जीवन में बना रहे इसके साथ-साथ भारत की सरकारों को भी चाहिए कि भारतीय उद्योग धंधे और रोजगार की हर हाल में रक्षा की जा सके |
1991 के बाद जो उदारीकरण का दौर शुरू हुआ है| उसके बाद अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में क्या परिवर्तन आया है और हमें अपनी नीतियों को भविष्य के लिए किस प्रकार से तैयार करना है, इसका भी हमें ध्यान करना जरूरी है | आज विश्व की महाशक्तियां अमेरिका और चीन आपस में “व्यापार-युद्ध” में उलझी हैं तथा भारत जैसे विकासशील देशों के निर्यात पर भारी भरकम टैक्स लगाकर अपने यहां आयात को महंगा करने की कोशिश निरंतर की जा रही है | तब हमें यह सोचना है कि क्या उदारीकरण और वैश्वीकरण की विकसित और विकासशील देशों के लिए अलग अलग परिभाषा हो सकती है |
दुनिया के विकसित देशों को भी सोचना पड़ेगा कि कोई भी विश्व व्यवस्था तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक वह है समानता के सिदांत पर आधारित नहीं होती | वर्तमान में विश्व व्यापार व्यवस्था में भी इसकी जरूरत है |
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